शीव स्तुति छंद सारसी
दोहो
शंकर हे समरथपती। वडा देव वीशेष
वंदा पांव विश्वेश्वर। हाथ जोडी हमेश
समरथपती ने सेवजो़। छे देवजो सवेॅश्वरा
प्रख्यात भोलो भोलपण से। प्रणत हे पालेश्वरा
ओ देवना तु देव अवधूत। जब्बर जटाधार छो
कैलास शीखर से नजर कर। धुजॅटी आधार छो
छो काल हुंदा काल शंकर। स्थान जाको मषान को
मुक्ती प्रदाता मलक माथे। आप सौ इनशान को
भुतप्रेत भाषे नीत पासे। हरेक नो हीतवार छो
कैलाश शिखर से नजर कर। धुजॅटी आधार छो
बडदेव दाता शरण जाता। शुभथाता क्षणिक मे
दुखथाय वेता नहीरेता। कहुएता अडीग रे
संसार स्वामी बहुनामी। वीपती हरनार छो
कैलास शीखर से नजर कर। धुजॅटी आधार छो
द्रष्टी परे ज्या महादेवा। सुख ऐवा सांपडे
जे चीत कदीना चेतव्यु। आफरडु आवी पडे
नबलु नीवारी नाखवु। ईमे आपता पुरवार छो
कैलाश शीखर से नजर कर। धुजॅटी आधार छो
पारवतीना पती प्यारा। नाथमारा हीयबसो
टालो उदासी दाशखाशी। बातसाची मानशो
कीशोर भावे गुण गावे। देव खरो दातार छो
कैलाश शीखर से नजर कर। धुजॅटी आधार छो
रचना कीशोरदान सुरु
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