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18 नवंबर 2017

|| रवेची प्रशस्ति || कवि धार्मिक जासिल "मयूख" रचित

*|| रवेची प्रशस्ति ||*
जड चारण तनया जठे, बाक लोक बिसराय
कुलदेवी गावै कुकवि, रिझो पद्य रवराय
*(छंद दुर्मिला)*
रट नाम समान सुराग रम्मनिय दख्ख दम्मनिय
रख्ख रती
अळ कंथ अनंत हथी कथ मंत्र तुरंत हरंत बिकट्ट खती
कुळदेवि नराकिय पुज्य पराकिय हाक बुराकिय बाक कडी
रवराय रमम्मम् पाल परम्मम् बाल बरंगिय द्रग्ग बडी
बरकत्त सुकार्य करत्त समर्थ कुकार्य सुपत्त दुपत्त करे
व्रत भंग अमंगल तंग तरत्त विकार दुकारणको विफरे
नहि एक तरफ्फिय सर्व सरफ्फिय मात मुरब्बिय पीड लडी  
रवराय रमम्मम् पाल परम्मम् बाल बरंगिय द्रग्ग बडी
रज गाम रवक्किय खंड नवक्किय संग सवक्किय हैक हुई
लगि अंग उमंग समान तुरंग जुधारण जंग बजाय तुई
वरदायक संकट आय कपायक पाय उपायक जाय पडी
रवराय रम्म मम पाल परम्मम् बाल बरंगिय द्रग्ग बडी
नभ मध्य चमक्क सुशोभ रही फहरक्क फरक्क धजा प्रछटी
रवआलय कालय ईम कटे ग्रह सर्व लगे जिम जाय वटी
अब आखर चाड सुणावत आपत जाय हवे हण चाड चडी
रवराय रम्म मम पाल परम्मम् बाल बरंगिय द्रग्ग बडी
*-कवि धार्मिक जासिल "मयूख" रचित*

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