*||रचना:दहेज ||*
*||कर्ता: मितेशदान महेशदान गढवी(सिंहढ़ाय्च)||*
*||दोहा,छंद भाखडी||*
*{दोहा}*
*लखण काजे करे लेर,भंड लेय धन भोग,*
*मळे मलक में मीतड़ा,(एने)रिदै भरखे रोग*
*काळजा केरो कटको,देय धने जे दाम*
*माने जगमें मीतड़ा,(एने)रिदै वस्यो नै राम*
*लाड कोड ने लेरथी,करी चाकरी काई,*
*मोटी करी ने मीतड़ा,(एने)परे दहेजे पाई*
*रहेता कायम रोगी,(जे)कूळा घट रे काय*
(पण)
*मरे नरक मा मीतड़ा,(जे)धन दीकरी नु खाय*
*व्हालप हैये वेरियू,(ने जेणे)घेरयु आखु घर,*
*माणस मातर मीतड़ा,(एने)धन परे ना तू धर*
*भाग्य अधूरु भावमा,(ऐनु) देता वेहची देह*
*माणह एवा मीतड़ा,अथोक अकर्मी एह*
*छंद भाखडी*
वित्त खावयो जी के वित्त भावयो,
हित नावयो जी के हाय खावियो,
परया घरे परवेशवा सुत सहन दु:ख मन सेवती,
दुःख गहन अति निज माथ धर चिंता पिता दल हेवती,
दल काज घर पखवाज बन मूल दहेज दर्पण देखती,
दर्पण निखारे रूप पर इंण रीत रिवाज न रेखती,
*🙏---मितेशदान(सिंहढाय्च)---🙏*
*कवि मीत*
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