*|| रचना : शिवा द्वादशी ||*
*|| छंद : मोतीदाम ||*
*|| कर्ता : मितेशदान महेशदान गढवी(सिंहढाय्च) ||*
तिहाएत नाम समोवड तान,
सदातन जोग घूमे समशान,
जटाधर झंकारते जशवान,
देवो मही देव तुहि बलवान,,(१)
(तिहाएत-त्रिजो देव,ब्रह्मा,विष्णु ने *महेश*)
शिवजीनॉ नाम नु तान समग्र विश्व मा मौखरे छे,जे देवोना देव छे,)
बिडम्बन का खंड जारत बंड,
अखंडन शेष उगारत पंड,
नमोकार ॐकार नाद प्रचंड,
निलाकंठ नाथ भुजे व्रेहमंड,(२)
वृताधप चाह कृताह किताह,
वृथाय अथाग सु पावत राह,
प्रताप किरात कु पातक जाव
सुखाय सराय मीताहक पाव,(३)
(वृताधप-शिवना हजार नामो मानु एक नाम,जेना द्वारा दरेक मनुष्यनी वृति नु पोषण थाय छे,)
(जेना नाम द्वारा सर्व वृथाय-कष्ट पर अथाग राहत मळे छे,)
(शिव नाम परतापे दरेक (पातक)दोषि नो दोष दूर थै सके एटली शक्ति समाएल छे)
(जे सुख ने सरवा तथा मीठप ने पामवा नों एक रस्तो छे)
डमंकित नाद सूरे बज डाक,
भमेनित संग भु धारण धाक,
अजा नाथ तांडव त्राटक ताक,
थिरेथट गिरी गजावत थाक,(४)
पिनाकिन वेद महा प्रखियात,
दियो कज राम धनु कर दात,
तुहि त्रीयलोक तणो कहु तात,
शिवा सुख आपत लोकेयसात,(५)
भुजंगीय डोक लपेटिये भेख,
ध्रुजट्टीय भाल विभूतिय धेख,
वरे जम्म काल पलायन वाट,
दिठे शिव दंभण दारण डाट,(६)
तरु जप्पतप्प थकी शिवताप,
सरे चहु वेद भणी समताप,
उमा सोम रूप तुजो अखियात,
विश्वम्भर नाथ जपु जिह वात,(७)
जगद्वर भूप जुवे जगदीश,
त्रिया अवनिश महा तुयईश,
पंचावत मुख बण्यो रघु प्राण,
प्रगट्टीय अंश शिवा परमाण,(८)
भण्यो नहीं वेद पुराण को भेद,
खर्यो नही मन्न को दोषंत खेद,
अट्यो हिय मंतर तू शिव एक,
रटयो मीत अंतर भाव सुरेख,(९)
(सुंदरभाव-सुरेख)
त्रिकाल पे ताल रखे त्रिपुरार,
अकाल पे काल बनी अधनार,
अणु सब धूल कणे वसु आप,
दणु जल नभ बणे धर दाप,(१०)
(दणु-पड़ाव)
(दाप-शक्ति,जोर)
घटे गल भंग रटे भक्त गीत,
नटे थिरकाव महामाह नित,
खरो वेह जस तोरो ख़टवांग,
सर्यो हर रूप प्रतिपल सांग,(११)
(सांग- वेश बदलावो ते,)
भवो भव जाप जपु भवनाथ,
हरी सुख याचु धरि दोउ हाथ,
खरो गुण वेंण धरु मीत खेव,
मने मुख नाम तुहि महादेव,
*🙏----मितेशदान(सिंहढाय्च)---🙏*
*कवि मीत*
9558336512
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