अत्यारे एक विचार आव्यो मनमा के इतिहास मा केटलाय जोड़ा अमर थई गया,पण एमा आज सुधि कोई एक तो थयु नथी इ एक कुदरती नियम छे इ बाबते अत्यार ना आ कलयुग मा जे वृति वर्ताई रही छे ए पर थी एक रचना लखी अत्यारे जे,
आप समक्ष रजु करू छु,
😊🙏
*|| रचना : रखड़ता रोता रिया||*
*|| छंद : सारसी ||*
*|| कर्ता : मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||*
ख़ट पट्या खोटा खेल मनना,खलक नजरे खर खर्या,
अट पट्या अवळा राह जनना,अकल अंधा अवतर्या,
करता परिश्रम कर करा,नै धर हरा धंधा थिया,
(पछी,)
प्यारा थिया नै प्राण निज पर,रखड़ता रोता रिया,(1)
वहेता वहेण जे प्रेमथी वण,वरह वरहेणा वर्या,
कर कसर नय कूट कुंड कम्मठ भ्रम्म थी भांडा भर्या,
हसता ने रोता हर घड़ी,थर पुरातन जै थिया,
(पछी,)
प्यारा थिया नै प्राण निज पर,रखड़ता रोता रिया,(2)
दुनिया नकारी एक दरपर,बेय सरभर बबडता,
आंसू थकी नित रात आखि,शब्द रमते सवळता,
मथ्या पणे नह मोक्ष पाम्या,एक रिदये ना थिया,
(तोय)
प्यारा थिया नै प्राण निज पर,रखड़ता रोता रिया,(3)
ममता मलक नी मोहमाया कालकूट मन ककळीया,
एने एक नहीं पण सर्व आंका,अबुध थई ने अकळीया,
भो पर भटकिया ए भटारा, *मीत* सुख नहीं माणिया,
(एटले)
प्यारा थिया नै प्राण निज पर,रखड़ता रोता रिया,(4)
*(अही नामाचरण मीत छे पण मीत नो अर्थ प्रीतम,चाहक,के व्हाल तरीके)*
*🙏---मितेशदान(सिंहढाय्च)---🙏*
*कवि मीत*
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