*||🐕कुतरा नी वेदना🐕||*
*|| रचना मितेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||*
*शु छे अमारा श्यामळा,पर भव केरा पाप*
*आज जणावो आप,मुक शा ने छो मितभा*
ए भसे छे के ऊपर तो एवू लागे छे के एम पुछे छे के हुई मूक तुय मूक पण तू भगवान छो ने अमे शु पर भव ना पाप कर्या तो अमने मूक प्राणी बनावीया
*भले अमोना भाग्यमा,जीव कुक्कुरनो जेम,*
पण
*कर जोडू हु केम,मानव सरखा मितभा*
अमारा भागये भले पेहला पाप हसे,पण अमने आ कुतरा नो जीव पण भले आप्यो,पण आ माणसो नी जेम केम बे हाथ जोड़वा तमारा सामे,
*तु जाणे त्रणलोक नी,वाणी अतः विचार,*
पण
*आ तन ना आचार,मने ज मळ्या का मितभा*
तू त्रण लोक ना विचारो,कार्य,आचार जोवस तो पण अमने ज केम आवा आचार आप्या,के अमे रखड़ता ज गणाइये छिये,
*वफादार वहेवारनो,कदी न चुकतो काज,*
पण
*आ भव अमने आज,मडदु माने मितभा*
कुतरो छू पण आज जे होय ए अमने लातु मार मार करे,जाणे अमारा मा जीव नथी,मडदा छिये के शु अमे,,
*नाराजी थी नाखसु,पाय पड़ी ने पोक,*
*करमे अमणा कोक,मूक ने समजो मितभा*
*🙏---मितेशदान(सिंहढाय्च)---🙏*
*कवि मित*
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