*|| छंद भुजंगी ||*
*|| सुरो आज कागं ||*
*|| कर्ता : कवि मितेशदान महेशदान सिंहढाय्च ||*
*सरीता तणा चारणा वेंण सारे,*
*महा नाथ रिज्यो फुलेसू मदारे,*
*बण्यो मोभणो माथ खिल्यो सु बागं,*
*कळायो दुलारो सुरो आज कागं(1),*
*फरूके सुगंधी धरा नो फुवारो,*
*झरूखे ऊभो तूलसी छोड क्यारो,*
*जनेता हुकारे कहे दुल्लो जागं,*
*कळायो दुलारो सुरो आज कागं,(2)*
*लता डाळ ने पान बिंदुय लाटे,*
*खुला केश नी दाढ़ वाळी रुवाटे,*
*पहेरी रुडी मथ्थ चंगी सु पाघं,*
*कळायो दुलारो सुरो आज कागं,(3)*
*जड़ी ज्योत मा घी पुरायो जगारे,*
*कळा कंठ नी धार ना'वे कगारे,*
*अड़ा भीड़ आवो न कोई अथागं*
*कळायो दुलारो सुरो आज कागं(4)*
*मुखे राम ना नाम नी बात मेली*
*बनी हालियो चारणा साथ बेली*
*दले ना दग़ाव्यो कुणो मित दागं*
*कळायो दुलारो सुरो आज कागं(5)*
*©*
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