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23 जनवरी 2020

|| सुरो आज कागं || || रचना मितेशदान गढवी(सिंहढाय्च) ||

*|| छंद भुजंगी ||*
*|| सुरो आज कागं ||*
*|| कर्ता : कवि मितेशदान महेशदान सिंहढाय्च ||*



*सरीता    तणा    चारणा   वेंण   सारे,*
*महा   नाथ   रिज्यो   फुलेसू     मदारे,*
*बण्यो  मोभणो माथ  खिल्यो सु बागं,*
*कळायो  दुलारो सुरो आज  कागं(1),*

*फरूके सुगंधी धरा  नो    फुवारो,*
*झरूखे ऊभो तूलसी छोड क्यारो,*
*जनेता  हुकारे  कहे  दुल्लो जागं,*
*कळायो दुलारो सुरो आज  कागं,(2)*


*लता  डाळ  ने  पान  बिंदुय  लाटे,*
*खुला  केश  नी दाढ़ वाळी रुवाटे,*
*पहेरी  रुडी  मथ्थ   चंगी  सु पाघं,*
*कळायो  दुलारो  सुरो  आज  कागं,(3)*


*जड़ी  ज्योत मा घी पुरायो जगारे,*
*कळा  कंठ  नी  धार ना'वे    कगारे,*
*अड़ा भीड़ आवो  न  कोई अथागं*
*कळायो  दुलारो  सुरो  आज कागं(4)*


*मुखे राम ना नाम नी बात मेली*
*बनी हालियो चारणा साथ बेली*
*दले ना  दग़ाव्यो कुणो मित दागं*
*कळायो दुलारो सुरो आज कागं(5)*



*©*

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