-------माथाकुट घणी-------
लखवा बे-चार शब्दो ने माथाकुट घणी
कहेवी नानी अमथी वात ने माथाकुट घणी
अवीरत चालतुं रहेवुं पडे छे श्वास लेवा
जीवन सफर बहु नानी ने माथाकुट घणी
मुखोटा बधा सुंदर लगाडी फरे छे अहीं
ओणखवो ऐक स्वजन ने माथाकुट घणी
जरुरत वगर नाहक नौका शरगाणे छे
"देव" डुबवुं छे मजधारे ने माथाकुट घणी
✍🏻देव गढवी
नानाकपाया-मुंदरा
कच्छ
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