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24 मई 2020

क्रांतिकारी प्रतापसिंह बारहट(चारण) की जयंती एवं शहादत दिवस

क्रांतिकारी प्रतापसिंह बारहट(चारण) की  जयंती एवं  शहादत दिवस


शहीद प्रतापसिंह बारहट्ट (चारण)   

उनका जन्म राजस्थान के उदयपुर में हुआ थे। वे केसरी सिंह बारहठ के पुत्र थे। प्रारंभिक शिक्षा कोटा, अजमेर और जयपुर में हुई। क्रांतिकारी मास्टर अमीरचंद से प्रेरणा लेकर देश को स्वतंत्र करवाने में जुट गए।

वे रासबिहारी बोस का अनुसरण करते हुए क्रांतिकारी आन्दोलन में सम्मिलित हुए। रास सिंह बिहारी बोस का प्रताप पर बहुत विश्वास था। ३ दिसम्बर १९१२ को लॉर्ड हर्डिंग्स पर बम फेंकने की योजना में वे भी सम्मिलित थे। उन्हें बनारस काण्ड के सन्दर्भ में गिरफ्तार किया गया और सन् १९१६ में ५ वर्ष के सश्रम कारावास की सजा हुई। बरेली के केंद्रीय कारागार में उन्हें अमानवीय यातनाएँ दी गयीं ताकि अपने सहयोगियों का नाम उनसे पता किया जा सके किन्तु उन्होने किसी का नाम नहीं लिया। ७ मई १९१८ को जेल में ही उनकी मृत्यु हो गई। बरेली जेल में चार्ल्स क्लीवलैंड ने इन्हें घोर यातनाएं दी ओर कहा - "तुम्हारी माँ रोती है " तो इस वीर ने जबाब दिया - " में अपनी माँ को चुप कराने के लिए हजारों माँओ को नहीं रुला सकता। " और किसी भी साथी का नाम नहीं बताया।


"वीरां प्रताप जननीम् सततम् स्मरामि''
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यह वे शब्द हैं जो आजादी के पुरोधा और अमर शहीद ठाकुर केसरीसिंह बारहठ ने अपने पुत्र अमर शहीद कुंवर प्रतापसिंह बारहठ की शहादत पर वीर माता माणिक्य कंवर के प्रति ऐसा पुत्र जनने पर आभार प्रकट करते हुए कहे थे।
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मैं अपनी एक मां को हंसाने के लिए हजारों माताओं को नहीं रूला सकता
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पराधीनता के पाश को काटने के लिए सर्वस्व बलिदान की भाव-भूमि पर खड़े भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन में निहित आनंद-मठ की संतानों की अप्रतिम उत्सर्ग भावना को शाहपुरा के बारहठ परिवार ने चरितार्थ कर दिखाया था। प्रतापसिंह बारहठ समूचे देश में विरले ही क्रांतिकारी हैं जिनका जन्मदिन व पुण्यतिथि एक ही दिन की है। शाहपुरा जिला भीलवाड़ा में जन्मे कुंवर प्रतापसिंह बारहठ की जन्मतिथि 24 मई 1893 तथा आत्मोत्सर्ग 24 मई 1918 को हुआ है। प्रताप का बचपन व प्रांरभिक शिक्षा कोटा में हुई। प्रताप ने आजादी के आंदोलन में प्राणोत्सर्ग का निश्चय कर मां से धोती फट जाने के बहाने तीन रुपए का प्रबंध करने की विनती की और मां ने रुपए का प्रबंध कर उन्हें दिए। तब वीर माता यह नहीं जानती थी कि उसके पुत्र को यह रुपए धोती के लिए नहीं आजादी के आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रस्थान करने को चाहिए। दिल्ली के चांदनी चौक में लार्ड हॉर्डिंग्स पर बम फेंकने के बाद वीरवर प्रताप के पकड़े जाने पर वीर माता को प्रताप की यह बात समझ आई। तब उस वीर माता का जो कथन था वह आज भी रगों में उबाल ला देता है। उन्होंने कहा था कि यदि प्रताप मुझे अपनी मंशा जाहिर करता तो मैं उसे तिलक लगाकर विदा करती।
घर से निकलने के बाद प्रताप क्रांतिकारी दल में शामिल हो गए। जहां उनका रास बिहारी बोस, मास्टर अमीरचंद जैसे क्रांतिकारियों से संपर्क हुआ और अल्प समय में ही वह विपल्वकारी क्रांति पुजारी प्रताप उनका विश्वासपात्र बन गया। और इसके बाद ही उन्होंने वीरवर काका जोरावरसिंह बारहठ के साथ मिलकर दिल्ली के चांदनी चौक में लार्ड हॉर्डिंग पर उस समय बम फेंका जब वह भारत वर्ष की अस्मिता को रौंदने के उद्देश्य से हाथी पर बैठकर अपनी अंग्रेजी शान को दर्शाने की कोशिश कर रहा था। इसके बाद प्रताप लंबे समय तक भूमिगत रहकर क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देते रहे। फिर वह काला दिन भी आया जब अपने एक परिचित की गद्दारी के कारण जोधपुर के निकट आसानाडा रेलवे स्टेशन पर धोखे से उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। इसके बाद उन्हें बरेली जेल में भेजा गया, जहां अंग्रेजों ने भारत मां के उस वीर सपूत को घोर यातनाएं दीं और पिता केसरी सिंह व चाचा जोरावर सिंह को छोड़ देने जैसे प्रलोभन देकर तोड़ना चाहा।
"प्रताप को कहा गया कि तुम्हारी मां तुम्हारे लिए रोती है। तब उस वीर सपूत द्वारा दिया गया जवाब अंग्रेज अफसरों को अंदर तक हिला गया। प्रताप ने निड़र होकर बड़े साहस के साथ उत्तर दिया कि मैं अपनी एक मां को हंसाने के लिए हजारों माताओं को नहीं रूला सकता। ऐसा था आजादी का वरण करने वाला वो महान योद्धा।"
अंग्रेजों के जुल्म की इंतहा यही पर खत्म नहीं हुई, उन जालिमों ने कुंवर प्रताप के आत्मोत्सर्ग करने बाद भी उनकी पार्थिव देह को अपमानित करने का प्रयास किया और प्रताप के हिंदू होने के बावजूद ब्रिटिश अधिकारियों ने उनकी पार्थिव देह को बरेली जेल परिसर में कब्र खोद कर दफना दिया। प्रताप को अंतिम बार भीलवाड़ा रेलवे स्टेशन पर मालगाड़ी में लगे अंग्रेज अफसर मिस्टर आर्मस्ट्रांग, तत्कालीन इंस्पेक्टर जनरल पुलिस, इंदौर, के सैलून में देखा गया था। जब वे पुलिस हिरासत में थे। मिस्टर आर्मस्ट्रांग प्रताप के पिता केसरीसिंह बारहठ के विरुद्घ चल रहे राजद्रोह के केस का इंनेस्टीगेशन इंचार्ज था। उस समय पिता-पुत्र के बीच कुछ पल संवाद हुआ, जिसमें पिता ने प्रताप को ताकीद किया कि यदि उसने अंग्रेजों से किसी भी प्रकार का समझौता किया तो जेल से निकलने पर मेरी पहली गोली तेरे ही सीने पर चलेगी।
कु. प्रतापसिंह की शहादत पर पिता केसरीसिंह बारहठ ने बहिन को हजारी बाग जेल से एक पत्र लिखा जिससे स्पष्ट होता है कि प्रताप के बलिदान को उन्होंने अपने परिवार की ऐतिहासिक उपलब्धि माना। केसरीसिंह बारहठ ने अपने पत्र में लिखा था कि -
"भारत में जन्म लेने के साथ ही जो कर्तव्य प्रत्येक भारतीय को अविच्छिन्न प्राप्त होते हैं, जो ऋण- वह पुरुष हो या स्त्री- सब पर रहता है, उस ऋण से मुक्ति पाने में ही हमारा कल्याण है। तुम यह जानकर अवश्य संतुष्ट होंगी कि भारत के इस प्रमुख प्रदेश में जागृति होने का शुभारंभ अपने कुटुंब की महान आहुति से हुआ है।"
मित्रों इस भावुक क्षण की अनुभूति भी कितनी करुण, कितनी उत्तेजक है जब शहीद प्रताप को जन्म देने वाली वीर माता माणिक्य कंवर के प्रति स्वयं ठाकुर केसरीसिंह बारहठ ने श्रद्धा अर्पित करते हुए लिखा कि- वीरां प्रताप जननीम् सततम् स्मरामि
ऐसे महान परिवार और उसके महान सपूत अमर शहीद कुंवर प्रतापसिंह बारहठ को उनकी पुण्यतिथि पर मेरा शत-शत नमन......

क्रांतिकारी केसरीसिंह  तथा शहीद प्रतापसिंह बारहट्ट (चारण) ना तैल चित्रोना अनावरण ::- Click Here


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