*|| बन्यु मन्न वेरी ||*
*|| छंद - भुजंगी ||*
*|| कर्ता मितेशदान गढवी(सिंहढाय्च) ||*
दरेक ना जीवन नी एक ज वात,,,,क्याक तो मन्न वेर मा पड़ी जाय
जेम के,
लोचन मन नो झगड़ो,
हैया ने मन नो झगड़ो,
कान अने मन नो झगड़ो,
दरेक वात मा मन्न ज वच्चे मुख्य छे
*भली जो करी भात नी वात भेरी,*
*जुगारी रह्यु दल्ल झांखे न झेरी,*
*वळी आज नाख्यु बनेलु वधेरी,*
*व्यथा ना विचारे बन्यु मन्न वेरी,*
*टकोरे सदा ने ए लावण्य टाणु,*
*वदी वात पाछी फरीने वखाणु,*
*बनी जो वखाणे चडी वात बेरी,*
*व्यथा ना विचारे बन्यु मन्न वेरी,*
*छटा कोट छानी रही ना छताये,*
*छताये बचावी रखी छाप छाये,*
*फटी जो फुलीने दबी चाप फेरी,*
*व्यथा ना विचार बन्यु मन्न वेरी,*
*हती कैक प्रश्नोपणा नी हयाती,*
*विरोधी जवाबो तणी गंध वाती,*
*दुभीनाथ दल्ली बनी एक देरी,*
*व्यथा ना विचारे बन्यु मन्न वेरी*
*कथी बातनी शुं ! कमाणी कहानी,*
*हठी लागणी थी बची अंत हानी,*
*सुनी मीत शाने पड़ी भाव शेरी,*
*व्यथा ना विचारे बन्यु मन्न वेरी,*
*🙏---मितेशदान गढ़वी (सिंहढाय्च)🙏*
*कवि मित*
9558336512
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