. || कवित. ||
रचना : जोगीदान गढवी (चडीया)
आलम अढार अवनी पे जो अराधे जाकुं
भार जो अढार वन्न संपत मे सायो है.
कुरु खेत दीयो सैन अक्षिणी अढार पुरी
युद्ध भी अढार दीन चाह चल्लवायो है.
आयुध अढार हत्थ देख्यो अरजुन्न रुप
अध्याय अढार गीता गांन मे गवायो है.
कहे जोगीदान कान जीलण कुं आयो जल्ल
दीन गीन ती मे ये अढार अंक आयो है.
कृ्ष्ण ने अढार आलम पुजे छे..अढार भार वनस्पति तेणे वन मां गायो ने चरावी छे..कुरुक्षेत्र मां सैन्य पण अढार अक्षणी लीधु..युद्ध पण अढार दीवस चाल्युं..अर्जुन ने वैराट रुप बताव्युं तेमां पण अढार हाथ मां आयुध लीधा..गीता पण अढार अध्याय मां गाई अने आजे ज्यारे जळ झीलवा आव्या छे..त्यारे तेमना जन्मदीन गोकळ आठम थी आज सुधी ना अढार दीवस थाय ते आंकडो पण कृष्ण चुक्या नथी....
जळ झीलणी नां अढार अंकी ने हजारो वंदन...जय श्री कृष्ण
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