मेरा दादा गुरु बचु बापु ( दो कविओ की कविता से दो आखर )
(चारण कवि श्री अविचळदान महेडु गुजरात और चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान)
(चारण कवि श्री अविचळदान महेडु गुजरात और चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान)
प्रित हिर ने रान्जा से कि हे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,दुनिया जानत एसी प्रित,,,,,,
मेरो गुरु जितु बापु दुनिया छोड के चल बसो,,दादा गुरु बचु बापु के साथ,,
मेरो गुरु जितु बापु दुनिया छोड के चल बसो,,दादा गुरु बचु बापु के साथ,,
कवि अविचल भणे तुजे सुणो कवि प्रताप,,,,,,ए हे सच्ची गुरु चेला की प्रीत
चारण कवि श्री अविचळदान महेडु ----- जय माँ मोगल---------- जय माताजी
(१) चारण कवि श्री अविचळदान महेडु गुजरात :
प्रित हिर ने रान्जा से कि हे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,दुनिया जानत एसी प्रित,,,,,,
मेरो गुरु जितु बापु दुनिया छोड के चल बसो,,दादा गुरु बचु बापु के साथ,,
कवि अविचल भणे तुजे सुणो कवि प्रताप,,,,,,ए हे सच्ची गुरु चेला की प्रीत
मेरो गुरु जितु बापु दुनिया छोड के चल बसो,,दादा गुरु बचु बापु के साथ,,
कवि अविचल भणे तुजे सुणो कवि प्रताप,,,,,,ए हे सच्ची गुरु चेला की प्रीत
(२) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
अविचल कथा तू बरणिये ,,,,,,,राजकुला रमझोल ,,,,,,,,,,,,,,,,
भाट्टी हाङा और शिशोदिया ,,,,राणा लिख मेवाङ ,,,,,,,,,,,,,,,
झाला लिखियो झालाविङ रा,,और लिखजे राज कुला राठोङ ,,
भाट्टी हाङा और शिशोदिया ,,,,राणा लिख मेवाङ ,,,,,,,,,,,,,,,
झाला लिखियो झालाविङ रा,,और लिखजे राज कुला राठोङ ,,
(३) चारण कवि श्री अविचळदान महेडु गुजरात :
शबद आया हे गेबी नाद से,,,, सुनो मे मॉ मोगल रो आदेस,,,,
का अविचल तु फिरे गुमान मे, सघलो सुखी करनो चारण नेस
का अविचल तु फिरे गुमान मे, सघलो सुखी करनो चारण नेस
(४) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
शब्द गुँजियो जाण हुयो शंख रौ नाद,,जग माँ मोट्टी मावङी ,,
मोगल तू करत कर नाग उनमाद,,,,,,काली धावल धावङी ,,
मेहङू अविचल है आ मात उमराव ,,,
मोगल तू करत कर नाग उनमाद,,,,,,काली धावल धावङी ,,
मेहङू अविचल है आ मात उमराव ,,,
(५) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
अविचल तेरी वार्ता ,,,,,,गई कालेजो चीर ,,
देखण स्यूँ छोट्टी लगे,, ,घाव कर गंभीर ,,,,,
देखण स्यूँ छोट्टी लगे,, ,घाव कर गंभीर ,,,,,
(६) चारण कवि श्री अविचळदान महेडु गुजरात :
अविचल घाव पडो तुज दिल मे,,,,,केएसो तु घाव रुजाय,,,,,,,,,,,,,
वैद हकिम रो एलम काम न लगो, प्रताप तोरा शबदे घाव विसराय
वैद हकिम रो एलम काम न लगो, प्रताप तोरा शबदे घाव विसराय
(७) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
घाव प्रेम रो इसो पङियो,,,,,,गयो हिये सम्माय ,,,,,,,,,,,,
प्रित लागी कर धरू लेखन्नी,,थाँने लिखूँ मै सात सिलाम ,,
मेहङू मन मा बस गया,,,,,,,,हो ज्यो मुरली वाला श्याम ,,
प्रित लागी कर धरू लेखन्नी,,थाँने लिखूँ मै सात सिलाम ,,
मेहङू मन मा बस गया,,,,,,,,हो ज्यो मुरली वाला श्याम ,,
(८) चारण कवि श्री अविचळदान महेडु गुजरात :
प्रेम प्रेम सो सब कहे,,,,,,,,,,,प्रेम की बात न जानत कोइ,,,,,,,
सो ढाइ अक्शरा हे प्रेम रा,,,,इसको जानत हे कवि प्रताप भाइ
सो ढाइ अक्शरा हे प्रेम रा,,,,इसको जानत हे कवि प्रताप भाइ
(९) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
प्रित शब्द रो अर्थ तो ,,जाण ला हर कोई,,
प्रेम शब्द हिये उठ्ठ ,,,,,मेहङू मन रै माई ,,
प्रेम शब्द हिये उठ्ठ ,,,,,मेहङू मन रै माई ,,
(१०) चारण कवि श्री अविचळदान महेडु गुजरात :
प्रित हिर ने राजा से कि हे,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,दुनिया जानत एसी प्रित,,,,,,
मेरो गुरु जितु बापु दुनिया छोड के चल बसो,,दादा गुरु बचु बापु के साथ,,
कवि प्रताप ए सुणो भने कवि अविचल तुजे,,,,,ए हे सच्ची गुरु चेला की प्रीत
मेरो गुरु जितु बापु दुनिया छोड के चल बसो,,दादा गुरु बचु बापु के साथ,,
कवि प्रताप ए सुणो भने कवि अविचल तुजे,,,,,ए हे सच्ची गुरु चेला की प्रीत
(११) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
सच्चा गुरू जगत मा,,,,,,,,,,,,,,,,,,मिल्या ना मुझ को कोये ,
थाँके कण्ठ बिराजो शारदा है माँ,,सच्ची गुरू निज मोयी ,,,
थाँके कण्ठ बिराजो शारदा है माँ,,सच्ची गुरू निज मोयी ,,,
(१२) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
हिय हिंगलाज राखिये है,,,,,अविचल शक्ती शुरराय ,,,,
राज राठोङी जद आविया,,,माँ पुर्ण करिया सब काज,,
कन्नोज धरा माँ अवतरी,,,,,,राज कुला राठोङ ,,,,,,,,,,,
कहे प्रताप जगत मा मेहङू आ माँ सबस्यूँ मोट्टी थाय ,,
राज राठोङी जद आविया,,,माँ पुर्ण करिया सब काज,,
कन्नोज धरा माँ अवतरी,,,,,,राज कुला राठोङ ,,,,,,,,,,,
कहे प्रताप जगत मा मेहङू आ माँ सबस्यूँ मोट्टी थाय ,,
(१३) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
अथक प्रयत्न मै करू ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,और अविचल करू प्रयास,,
मीगल सोनल आई का दर्शन करू,,जद मन री बुझला प्यास,,,,
गढवी गढ गुजरात मा है,,,,,,,,,,,,,,,,होली आवण री आश ,,,,,,
जीगी चङीया वहाँ मिलेला,,,,,,,,,,,,,,बस्या मेहङु मन रे माँये ,,
मीगल सोनल आई का दर्शन करू,,जद मन री बुझला प्यास,,,,
गढवी गढ गुजरात मा है,,,,,,,,,,,,,,,,होली आवण री आश ,,,,,,
जीगी चङीया वहाँ मिलेला,,,,,,,,,,,,,,बस्या मेहङु मन रे माँये ,,
(१४) चारण कवि श्री अविचळदान महेडु गुजरात :
मे देखो रानो प्रतापरो,,,,,, ,अरवली गिरीमाला माय,,
दुजो मारो चारन प्रतापरो,,,ध्ररा राजस्थान सोहाय,,,,
दुजो मारो चारन प्रतापरो,,,ध्ररा राजस्थान सोहाय,,,,
(१५) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
अविचल कल्पना न कामकी ,,म्हारो राणु हिय मा है नेह,,
आ चारण सुत की कलपना,,,,हिय नेहङू बस्यो है नेह ,,,
आ चारण सुत की कलपना,,,,हिय नेहङू बस्यो है नेह ,,,
(१६) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
धरा नेह प्रताप रो राज अरावली माय,,अकबर सामो जोलङियो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ना ही भाल झुक्यो मल माँय,,,,,,,,,,,,,,धारा लहु की बह चली हल्दि घाट्टी माय,,
कहे प्रताप तात मेरे मेहङू ,,,,,,,,,,,,,,,वो महाराणा कहवाय ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
ना ही भाल झुक्यो मल माँय,,,,,,,,,,,,,,धारा लहु की बह चली हल्दि घाट्टी माय,,
कहे प्रताप तात मेरे मेहङू ,,,,,,,,,,,,,,,वो महाराणा कहवाय ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
(१७) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
कोल कर चारण सुत आज ,,,,,,,,,,सुणियो अविचल आज ,,,,,,,,,,,,,
फागण सुत पुनम नै,,,,,,,,,,,,,,,,,,,आवा धरा गुजरी राज ,,,,,,,,,,,,,,
सोम नाथ और धीश दवारका माँ,,दर्शण स्यूँ पुर्ण हुवेला सब काज,,
हाथ जोङ थाँने करे विन्ती मेहङू,,,गाडण शुत यो आज ,,,,,,,,,,,,,,,
फागण सुत पुनम नै,,,,,,,,,,,,,,,,,,,आवा धरा गुजरी राज ,,,,,,,,,,,,,,
सोम नाथ और धीश दवारका माँ,,दर्शण स्यूँ पुर्ण हुवेला सब काज,,
हाथ जोङ थाँने करे विन्ती मेहङू,,,गाडण शुत यो आज ,,,,,,,,,,,,,,,
(१८) ब्रामण शिघ्र कवि श्री रामभाइ बरेजा गुजरात :
कलम री चलायो अविचल,,,,दान रे दिधो कविता रो ;,,,,,,,
उजळो थीयो महेंदु परिवार,,,साहब को कुण विसरे रामला ।
उजळो थीयो महेंदु परिवार,,,साहब को कुण विसरे रामला ।
(१९) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
वाह वाह मेहङू राजवी,,,गढवी गढ गुजरात ,,,,,,,,,,,
पान्ना प्रित का थे लिख्या,,मन माई हुयो घणो हुलाश,,
पान्ना प्रित का थे लिख्या,,मन माई हुयो घणो हुलाश,,
(२०) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
गुजरात के कुच्छ स्थान जिनकी महीमा इसतरह ,,
अविचल सा को स्प्रेम भेट कर रहा हूँ सा,,मै सदा मनाऊ मात को ,अम्बा जी मा थाय वो ,,
शंभू ,विष्ण और ब्रमा मिलिया खेङ ब्रमा के माँये जो,,पाटण है गढ पाटवी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बहुचार है ज्याँ मात वो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,पाँवाँगढ माँकाली बेठ्ठी सिखर उपर हर्षाय हो,,
जुनागढ मा खोङल आई मन्दिर बहुत सुहाया हो,,कुँवर सोलंकी युध्द कियो वा कच्छ नी नानी रण केवाय हो ,
शंभू ,विष्ण और ब्रमा मिलिया खेङ ब्रमा के माँये जो,,पाटण है गढ पाटवी ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
बहुचार है ज्याँ मात वो ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,पाँवाँगढ माँकाली बेठ्ठी सिखर उपर हर्षाय हो,,
जुनागढ मा खोङल आई मन्दिर बहुत सुहाया हो,,कुँवर सोलंकी युध्द कियो वा कच्छ नी नानी रण केवाय हो ,
कोठ मा गणपति विराजे,,अरणेज माँ भवानी थाये हो,,
बगदाणा बजरंग बल्ली है,,हाथीजण गोगा रहसाय हो,,
मिना वाङा सदा भलो है,,दशा माँ दर्श दिखाय हो ,,,,,
कहे प्रताप अविचल शक्ती धरा गुरजरी माँय हो ,,,,,,,,
बगदाणा बजरंग बल्ली है,,हाथीजण गोगा रहसाय हो,,
मिना वाङा सदा भलो है,,दशा माँ दर्श दिखाय हो ,,,,,
कहे प्रताप अविचल शक्ती धरा गुरजरी माँय हो ,,,,,,,,
(२१) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
अविचल कथा वर्णित करी थे,,गढवी हो गुजरात मा,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,
राजल ,खोङल ,बहुचर ,मेलङ,,ईन्द्र और माँ मोगल तेरे है सब साथ माँ,,
हाथ जोङ नम्न करूं मै शती रूपल मात ने,,कहे प्रताप है अविचल मेहङू यह शती अवतार शाक्षात माँ,
राजल ,खोङल ,बहुचर ,मेलङ,,ईन्द्र और माँ मोगल तेरे है सब साथ माँ,,
हाथ जोङ नम्न करूं मै शती रूपल मात ने,,कहे प्रताप है अविचल मेहङू यह शती अवतार शाक्षात माँ,
(२२) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
अविचल का अरथ है जो विचलीत ना हो,,की सी भी प्रिस्थीति मे,,
और वो आप हैं मेहङू राज,,देवि पुत्र मै आपको नमन करता हूँ,,
और वो आप हैं मेहङू राज,,देवि पुत्र मै आपको नमन करता हूँ,,
(२३) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
कवि तज्ज ना कल्पन,,माँ ममत तज्ज ना प्यार,,
चारण तज्ज ना लेखनी,,वीर तज्ज ना तलवार,,
चारण तज्ज ना लेखनी,,वीर तज्ज ना तलवार,,
(२४) चारण कवि श्री प्रतापदान गाड्ण राजस्थान :
आ मानल मन की आश है,,गढवी कुल रे माये,,
सोनल रूपल सब शगत अरू गुण वन्ती केवाय,,मेहङू अविचल धरा अवतरी खोङल माँ चारञ शुता केवाय ,,,
सोनल रूपल सब शगत अरू गुण वन्ती केवाय,,मेहङू अविचल धरा अवतरी खोङल माँ चारञ शुता केवाय ,,,
(२५) ब्रामण शिघ्र कवि श्री रामभाइ बरेजा गुजरात :
वाह ! अविचलदानभाई सरस रचना बनावी छे एनी शुं वात करुं
अवतर्यो चारण रो कुळ,,लगी लहेर लायजे री,,,,,,,,,,
दिली सूं डणक दिधी,,ई तो पुनशी पधारियो रामला ।
दिली सूं डणक दिधी,,ई तो पुनशी पधारियो रामला ।
चारण कवि श्री अविचळदान महेडु
avichalgadhavi@gmail.com
Mo. 74053 59042
Mo. 74053 59042
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