कवित (1)
शोक न हर्ष मोह, आलय ना अंग हुको
लयमे सुखालय , सकल जग सारी है.
लयमे सुखालय , सकल जग सारी है.
काउसे विरोध हे न , मन को निरोध किये ,
बोध हे अमित वृती , तदाकार धारी है.
बोध हे अमित वृती , तदाकार धारी है.
काम हे न क्रोध हे न, लोभ हे न क्षोभ हे न,
सुविध्या सुनीतिवान , अविध्या विदारी है.
सुविध्या सुनीतिवान , अविध्या विदारी है.
'पालु' अतोल गती ईश मे अडोल ध्यान,
ऐसे शुर संतन को, वंदना हमारी है ....
ऐसे शुर संतन को, वंदना हमारी है ....
( चारण महात्मा श्री पालु भगत// डायाभाई गढवी (मोटी खाखर))
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