भीमनाथ महादेव - धोळा- गुजरात मा शीला मा कंदारायेल शिव स्तुति..
प्राचीन हिन्दू मंदिर नि बंधारण प्रथा ने वर्णवे छे...
प्राचीन हिन्दू मंदिर नि बंधारण प्रथा ने वर्णवे छे...
.....................आदि शिव ॐकार..................
रचयिता: राजकवि पिंगलशीभाई पाताभाई नरेला.. भावनगर.
छंद. चर्चरी
छंद. चर्चरी
आदि शिव ऊँकार, भजन हरत पाप भार,
निरंजन निराकार , ईश्वर नामी,
दायक नव निधि द्वार, ओपत महिमा अपार,
सरजन संसार सार, शंकर स्वामि ,
गेहरी शिर वहत गंग, पाप हरत जल तरंग,
उमिया अरधगं अंग केफ आहारी,
सूंदर मूर्ति सम्राथ, हरदम जुग जोड़ी हाथ,
भजहु मन भीमनाथ शंकर भारी....1
निरंजन निराकार , ईश्वर नामी,
दायक नव निधि द्वार, ओपत महिमा अपार,
सरजन संसार सार, शंकर स्वामि ,
गेहरी शिर वहत गंग, पाप हरत जल तरंग,
उमिया अरधगं अंग केफ आहारी,
सूंदर मूर्ति सम्राथ, हरदम जुग जोड़ी हाथ,
भजहु मन भीमनाथ शंकर भारी....1
भलकत्त हे चंद्र भाल जलकत्त हे नैन ज्वाल,
ढळक्तत हे गल विशाल मुंडन माला ,
धर्म भक्त प्रणतपाल, नाम रटत सो निहाल,-
काटत हे फ़ंद काल दीन दयाला,
शोभे योगी स्वरूप्, सहत ब्रखा, सीत, धुप,
धूर्जटि अनूप भस्म लेपन धारी सुन्दर...........2
ढळक्तत हे गल विशाल मुंडन माला ,
धर्म भक्त प्रणतपाल, नाम रटत सो निहाल,-
काटत हे फ़ंद काल दीन दयाला,
शोभे योगी स्वरूप्, सहत ब्रखा, सीत, धुप,
धूर्जटि अनूप भस्म लेपन धारी सुन्दर...........2
घूमत शक्ति घुमंड, भुतनके झुंड़ झुंड ,
भभकत गाजत ब्रह्मांड नाचत भैरु,
करधर त्रिशूल कमंड, राक्षस दल देत दंड,
खेलत शंभु अखंड डहकत डेरुं,
देवन के प्रभुदेव, प्रगट सत्य अप्रमेव,
चतुरानन करत सेव नंदी, स्वारी.............3
भभकत गाजत ब्रह्मांड नाचत भैरु,
करधर त्रिशूल कमंड, राक्षस दल देत दंड,
खेलत शंभु अखंड डहकत डेरुं,
देवन के प्रभुदेव, प्रगट सत्य अप्रमेव,
चतुरानन करत सेव नंदी, स्वारी.............3
सोहत कैलासवास, दिपत गुणपास दास,
रंभा नित करत रास उत्सव राजे ,
निरखत अंध होत नास, तुरत मिटत काल त्रास,
होवे मनकू हुलास,भरमना भाजे,
चरचत चर्चरी छंद, पिंगल सबकु पसंद,
वंदन आनंद होत, वारंवारी, सुंदर. .................4
रंभा नित करत रास उत्सव राजे ,
निरखत अंध होत नास, तुरत मिटत काल त्रास,
होवे मनकू हुलास,भरमना भाजे,
चरचत चर्चरी छंद, पिंगल सबकु पसंद,
वंदन आनंद होत, वारंवारी, सुंदर. .................4
शिवरात्रि नि अनंत मौज...
हर हर महादेव...
2 टिप्पणियां:
Jay siyaram...aa stuti mate Dhanyawad...tame amaj darek sahitya mukata raho
Jay siyaram...aa stuti mate Dhanyawad...tame amaj darek sahitya mukata raho
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