राजस्थान ना आपणां एक युवा कवि नी ग़ज़ल
तुम पहले तो पढ़ोगे, फ़िर नज़रंदाज़ कर दोगे
ग़ज़ल जैसी चीज़ को भी आलू-प्याज़ कर दोगे
ढँग से दाद देने का भी तुम्हें सलीक़ा नहीं आता
जो दाद दे भी दी तो उसे भी दाद-ख़ाज़ कर दोगे
यूँ तो शेर जैसी, बहुँत धमकियाँ देते फिरते हो
ऐन मौके पे मगर बकरी की आवाज़ कर दोगे
ग़रीब को तो तुम बेवजह ही आँखे दिखाते हो
अमीर के आगे तुम, मगर झूठी लाज़ कर दोगे
सच कहुँ इस लिबास में आप क़यामत ढ़ा रहे हो
ख़ुदा कसम क़त्ल मेरा जरूर तुम आज कर दोगे
इसी तरह 'संतोष' जो गर लिखते रहे तो इक दिन
उसके दिल में तुम मुहब्बत का आग़ाज़ कर दोगे
द्वारा :- डॉ. संतोष कुमार चारण🙏🏻
** अन्य ग्रुप मां थी साभार 🙏
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें