मुख खुलता जेमनुं पर दु:ख भांगी जाय
"देव" ई सिध्ध संत जानीये ई नौका पार लगाय
अंदर थी नरम माखण ने बहार थी सखत देखाई
"देव" ऐ नो संग न छोडीये तो भवसागर तरी जाय
दुर्जन मलता लाख पण ऐक सज्जन न देखाई
"देव" ऐक स्वजन मलता ह्रदय तरस मटी जाय
पुस्तको मलता पैसा थी ऐ थी ज्ञान ग्रहण न थाय
"देव" मले कोई गुरू ज्ञानी तो संसार सार समजाय
प्रेम नी व्याख्या अटपटी ऐम ज न समजाई
"देव" राधा धेलो कान कहेवायो ने रुकमणी वरी जाय
✍🏻देव गढवी
नानाकपाया-मुंदरा
कच्छ
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