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8 जुलाई 2016

देव गढवीनी रचना

वरसे छे हररोज वरसाद मारी लागणी नो
तारा ह्दय नी आ वांझणी धरती ऊपर
ऐकाद बावणीयुं पण ऊगे तो मने लीलुंछम लागशे

हुं क्यां मांगु छुं के आप तारो तमाम समय मने
एक पल नी आप साची लागणी तो ऐ पण घणी
ऐ एक पल थकी जींदगी आखी लागणीसभर लागशे

आम जोवा जइशुं तो विश्वास केणववो मुश्किल
मुक्त मन थी मलो जो फक्त ऐक वार "देव"
तो दील ना एकाद खुणे थोड़ो पण विश्वास जागशे
✍🏻देव गढवी
नानाकपाया-मुंदरा
        कच्छ

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