।। शब्द ना सहारे ।।
* करूं छुं वात भीतर नी, शब्द ना सहारे।
जमावट छे जिगर नी, शब्द ना सहारे।
* न साथी न संगी न काफलो के भोमियो।
भाळ मळे छे डगर नी, शब्द ना सहारे.....।
* व्हेंचतो रहुं छुं खुश्बो जमाना ने हरदम।
खाण खोदी छे इतर नी,
शब्द ना सहारे.....।
* कदी भाव मारा, तारी लागणी पण।
चर्चा चर अचर नी, शब्द ना सहारे.....।
* अमृत ना कुंप सो, वसे छे ह्रदय मा।
तरूं नदी झहर नी,
शब्द ना सहारे.....।
* कंइ खोवाया नी वेदना, कंइ पामवा नी झंखना।
वात अगर के मगर नी, शब्द ना सहारे.....।
* करूं एक पुरी त्यां आरंभ सेंकडो नो
"जय" वणझार सफर नी, शब्द ना सहारे.....।
* * * * * * * * * * * * *
-कवि: जय।
- जयेशदान गढवी।
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