द्वारीकाधिश प्रभु कृष्ण परमात्मा ने चारण महात्मा इसरदासजीए 'हरिरस' नामनो ग्रंथ सभळाव्यो जे कृष्ण परमात्मा ए सामे बेसीने सांभळ्यो. आ ग्रंथ सांभळी प्रभु खुब ज प्रसन्न थइने इसरदास ने कइंक मागवानुं कहे छे. परंतु चारण महात्मा चारण होवाथी कोइ पण वाते वरदान नी याचना नी ना करेछे...
अने ए समय नी स्तुती...
हवे प्रभु सुं मांगु किरतार, सुं मांगु कीरतार
तमे राख्यो अपरंपार,हवे हुं सुं मांगु कीरतार
कृपा करीने चारण कुळमां, आप्यो छे अवतार
याद करुं त्यां आप आवीने,दर्शन द्यो छो दिदार
हवे प्रभु सुं मांगु कीरतार...
नित्य लेवानुं नाम आपनुं,मिथ्या छे संसार
अनित्य वस्तु नी इच्छा करुं, तो धीक् मारुं अवतार
हवे प्रभु सुं रे मांगु कीरतार...
मनुष्यदेह धरी आ जग मा,करवा परउपकार
भवसागर ने तरवा काजे,लख्यो हरीरस सार
हवे प्रभु सुं रे मांगु कीरतार...
नित्य वांचे ने सांभळे एने,न जोवा पडे जमद्वार
हरी भज्या इ पार उतर्या,एम कहे छे "इसरदास"
हवे प्रभु सुं रे मांगु कीरतार...
रचना --- परम वंदनीय चारण महात्मा इसरदास जी बारहठ
टाइपिंग --- राम बी गढवी
नवीनाळ कच्छ
फोन नं. --- 7383523606
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