मुझे ये दर्द का रिश्ता सुकुन देता है
युं आंसुओ को बहाना सुकुन देता है
ये माना की हमसें नजर फेर रहे हो
तेरा ये नजरें चुराना सुकुन देता है
बहुत सी बात जहन में दफ्न है मेरे
गमों को हंस के छुपाना सुकुन देता है
ये और बात है हम परीचीत थे कभी
तेरा अंजान हो जाना भी सुकुन देता है
याद कर कभी आंखे बंध करके मुझे
तेरा पलकें जुकाना भी सुकुन देता है
ख्वाईश है तेरी "देव"ना मीलेंगे कभी
तेरा युं ख्वाबों में आना सुकुन देता है
✍🏻देव गढवी
नानाकपाया-मुंदरा
कच्छ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें