, *कवित*
, *रचना:जोगीदान गढवी (चडीया)*
चडीया चडाई चांप देवता को ब्रह्म देव
शीव को धनुस विष्णुं बांण से वरायो है
भयो जुद्ध भारी बाँण बांण पे ब्रसाये बेउ
हर को ना हरी हरी हर ना हरायो है
आग दसदीसौ लाग भयी जग भाग भाग
त्राही त्राही नाद सबै देवता डरायो है
चारण चतूरी जग सूरी देखो जोगीदान
कंथ सैलजा को समाधान जो करायो है
ज्यारे ब्रह्माजीये ने देवताओ ने कान भंभेरणी करी ने विवाद करावी विष्णुं अने शिव मां कोनुं धनुस्य बळवान एवो विवाद करावी बंन्ने वच्चे युद्ध कराव्युं , जे युद्ध थी दुनिया नो नाश थवो तैयारी मां हतो त्यां चारणो ये आवी शिव ने स्तुती करी मनावी समाधान करावेयुं
(वाल्मीकी रामायण )
*(भायु भायुं वच्चे लडाई न थवादेवी ए चारणो नो जुनो धर्म छे,तो पोते तो भायु भायुं वच्चे केम लडी सके ? )*
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