.© *|| खलक पती ना खेल ||*
. *रचना: जोगीदान गढवी (चडीया)*
, *ढाळ: पाये तने विपळी लागु*
खलक पत खेल ई खेले, मालीक ना कोय ने मेले
झाझी कोंण झीक आ झेले, बापलीया तुं आव ने बेले...टेक
खोळीया केरा खोपचा मां क्यां, पुरीया नाथे प्रांण
सदीयुं थी कैक साधको सोधे, जरी ना थाती जांण
सांपडतुं कांय ना छेले, खलक पत खेल ई खेले....०१
देवकी ने तें दूभवा दीधी, कीया गुना मां कांन
जनम्यो जे कूंख जादवा त्यांथी, भागीयो कां भगवान
जणेता ने मूकीयुं जेले, खलक पत खेल शुं खेले...०२
आश लई तारे आंगणे आव्यो , ई जादवा तुंनेय जांण
कीधुं नई कां कानजी पेलुं, सुदामा नुं सनमान
दखीयारो आथडे डेले, खलक वर खेल शुं खेले...०३
पुछीयुं छे बहुं प्रेम थी तुंने , काळजे वाला कांन
मरवा टांणेय माधवा तुंने , जोउं हुं जोगीदान
विंटाळीन वाल्यपुं वेले, खल्लक पत खेल ई खेले...०४
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