*दुर क्षीतीज परथी...*
दुर क्षीतीज परथी पडतुं देखाणुं
मारु ज समणुं मने रडतुं देखाणुं
आज लीला रंग ना चश्मा पहेरीने
मृगलुं सुकां धांसने चरतुं देखाणुं
दुर क्षीतीज परथी...
आमतो रहेतुं हतुं सतत स्थिर जे
ऐ चित आज थोडुं फरतुं देखाणुं
ऐवुं शुं थयुं लागणी छलकी आम?
खाली नेह सरोवर उभरतुं देखाणुं
दुर क्षीतीज परथी...
बने नहीं ऐवुं के कोई भुलावे मने
छतां ऐ स्वजन मने विसरतुं देखाणुं
हतुं बहु सख्त ने आज आम केम?
"देव"पाषाण ह्रदय पीगणतुं देखाणुं
दुर क्षीतीज परथी...
✍🏻देव गढवी
नानाकपाया-मुंदरा
कच्छ
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