शेषनागनुं बीजु नाम पिंगल नाग छे...!
ऐ पिंगल नागने पोताना उपर केटली पृथ्वी रही छे ऐ जोवानी ईच्छा थता पृथ्वी पर आव्या. त्यां नाग पिंगलनी पाछळ गरुड पडयो एेटले ऐणे नागनुं रुप फेरवी लई चारणनुं रुप लीघेल अने गृहास्थाश्रम बांघेल.
गरुड पण तेमना धरनी आसपास तेने पकडवाना आशयथी रहेतो हतो. ऐक दिवस नाग पांचमनो दिवस आवतां तेमनी स्त्री नागपांचमनी पूजा करवा माटे नैवेघ लईने नागस्थान उपर जतां हतां त्यारे नागपिंगले कहयुं के '' तारे तो धरमां ज नाग छे माटे तारे त्यां जवानी जरुर नथी. तुं मारी पूजा करी ले. '' ऐम कही नागपिंगले मूळ स्वरुप बताव्युं.
जेवुं फरीने नागनुं रुप लीघुं अने धरना उंबरा सुघी आवे छे के तरत ज गरुड आवीने नागने उपाडीने सुमेरु पवॅत पर लई जाय छे. त्यां जई गरुड नागने खावानो विचार करे छे. त्यारे नागपिंगले कहयुं चारण देह घारण कयाॅ पछी मने कवितानुं ज्ञान थाय छे, तेथी मारी कविता लखवानी ईच्छा बाकी रही जाय छे. त्यारे गरुडे कविता बनाववानी रजा आपी.
नागपिंगल पहेलुं काव्य पचास करोड जोजन पृथ्वीनुं वणॅन करतुं सजेॅ छे.
पचास करोड जोजन पृथ्वी तणुं कवित नागपिंगल कहे छे ऐ पछी काव्यज्ञान नागपंगले गरुडने आपता तेनामां सद्दवृतिनी प्राप्ति थाय छे. वेरवृति छोडी गरुडे नागपिंगलने गुरु बनावी ले छे.
आजे पण '' पिंगल '' '' पिंगलसी '' ऐवा नाम चारण ज्ञाति सिवाय बीजी जातिमां ऐ नाम जोवामां नथी आवता. चारणोमां ऐ नामनी महत्ता छे अने ते शेषनागना भाणेज थाय छे. तेवी कथा छे.
'' भाणेज भोरिंग तणां '' जेथी शेषनागकुळ कहेवाती आहिर ज्ञातिने चारण '' मामा '' कहीने बोलावे छे. चारण अने आहिरने मामा भाणेजनो सबंघ छे.
- पिंगल छंद शास्त्रमांथी.
जय माताजी.
प्रस्तुति कवि चकमक.
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