*मितेशदान कृत रामायण गाथा,,,माथी,*
*|| ताड़का वध ||*
*|| छंद - पद्धरि ||*
*||कर्ता- मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च)||*
प्रति पल घटत्त घटना अनेक,
गुरुमुख वाचा धर करण टेक,
निश्चय किन्नो द्रढ़ सकळ सेव,
मारण दैेत्या पल पल सदैव,(1-51)
प्रत्यंचा सणणण चढत डोर,
खींचत दोरी टणणण टकोर,
हहकार भयो वन चका चौंध,
अरणक गाढ़ विकराळ क्रोध,(2-52)
खलबल हो जावत वन वेरान,
भय भीत पशु भागत खग
हैरान,
सुण कर्णम कलबल दुष्ट नार,
विचलीत मन होवत गति अपार,(3-53)
निरखत रघु राजन धनुष धार,
अकळ्यो मन युद्धन काज नार,
झपटी झटपट दौड़त विकार,
निकटे दूर निरखत मृत्यु द्वार,(4-54)
देखत लछमन कु रूप नार,
भासत निज भ्रातय रंग सार,
कद होवत ताड़ समो निशाच,
हिंसक नारी पापी पिशाच(5-55)
विकराळ देह धर दूत्तगाम,
वीजळी सम झपटी वे हराम,
ततकार बाण कर तीर छोड़,
सणणण सटाक दोरी मरोड़,(6-56)
धक धधक लाल लहू वहत खेद,
वख छिन्न काट तीर कियो छेद,
पीड़ धरिय नार पटकइ धरण,
चीख करत देह छोड़त मरण,(7-57)
परसन्न होव गुरु राम काज,
पापन काटे थापन सराज,
मंगल गुण गावत मीत नीत,
जूठन दळ पावत सत्य जीत,(8-58)
*🙏~~~मितेशदान(सिंहढाय्च)~~~🙏*
*कवि मीत*
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