, *||थीर आतम थाय छे||*
, *रचना: जोगीदान गढवी (चडीया)*
, *छंद: सारसी*
*गायी गिता गोविंद एमां अमर आतम आंकता*
*मरदा गणी मरदां बणी कां तिर अर्जुन तांकता*
*मारे मरेलां ने मलक पण अमर क्यां अंटाय छे*
*ए छतां अहनीश ॐ कारे थीर आतम थाय छे*.01
(भगवान कृष्ण गीता मां अर्जुन ने कहे छे के आत्मा कोयदी मरतो नथी शस्त्र तेने छेदी नथी सकतां अने सरिर तो मरेलुंज छे, तोय छतां मरदां ने माथे तिर तांणी ने मरद गणाववा गोविंद गीता गाय छे,मरेलां ने मारवा नुं कहे छे पण अहंकार मोह वगेरे जे अमर छे ते क्यारेय मरण न पाम्यो अने गीता रुबरु सांभळनार खुद अर्जुन मां पण जीतवानी के अधर्म नो नाश करवानो मोह जिवतोज रह्यो आम अमर अंटाता नथी पण तो ॐकारे आतम थीर थाय छे)
*ऋग्वेद मां लेखी ऋचाओ सर्व ऋषीये साथमां*
*जे लागीयुं कब जोगडा हयग्रीव केरा हाथ मां*
*समजाय ना एवुं सकळ ग्रंथो महीं गुंचवाय छे*
*ए छतां अहनीश ॐकारे थीर आतम थाय छे*.02
(सौथी जुना ऋग्वेद नी ऋचाओ तो विश्वामित्र वगेरे ऋषीयोये साथे मळी ने लखी, जेने विज्ञान सात हजार वर्ष जुनोज माने छे तो ब्रह्माना हाथ मांथी कयो वेद चोरी थयो जे हयग्रीव ने हाथ लागेल?? आ बधा ग्रंथो ना गोटाळा जांणवा छतां ॐकार आत्मा ने स्थिर करे छे)
*वेधु बनी खुद विश्वना जे दरिद जन ने दोभता*
*कचडी हजारो काळजां ने शुद्र कई खुद शोभता*
*आत्माज परमात्मा कहे पण जांणता न जराय छे*
*ए छतां अहनीश ॐकारे थीर आतम थाय छे*.03
(जे पोता ने विश्वना वेधु अने विद्वान गणावे छे तेवा धर्मना दुकानदारो दरिद्रनारायण ने शुद्र कही ने एना काळजा नी लागणीयो ने तेनी श्रद्धा ने कचडी नाखे छे, पोते कहेतो छे के आत्मा छे ई परमात्मा छे तो पछी जे वर्ग ने कचडी रह्या छो तेनो आत्मा परमात्मा नथी? अने जो छे तो शुकाम ते परमात्मा ने दुभाववामां आवे छे..पण छतां ॐकार थी आत्मा स्थिर थाय छे)
*जग नाथ कहीने ज्वारीये जे नाथ नव थ्या नार ना*
*पडघा रदय पछडाय छे अबळा तणां उदगार ना*
*मंदर पड्युं मुसकेलीये हजीये सीता नी हाय छे*
*ए छतां अहनीश ॐकारे थीर आतम थाय छे*.04
(जगत नो नाथ कही ने जे भगवान ने जुहार करीये छीये जे पोतानी नार ना नाथ थई ने पति फरज मां पाछा रह्या, वाल्मीकी ऋषी पोतानी हजारो वर्ष नी तपस्या होड मां मुकी तोय जे मानवा तैयार न थया ने अग्नि परिक्षा लेवा फरी उभा थया त्यारे ए धरती मां समाती सीता ना आखरी उदगारो ना पडघा हजी रदय पर पटकाय छे,कदाच आ मंदिर नि मुस्केलीयो ना मुळ मां क्यांक माता सीता नी हाय तो नई होय? पण ए छतां ॐकार थी आत्मा स्थिर थाय छे)
*आ प्रथी नभ जळ अगन वायुं परखता नीज प्रांन ने*
*जांणी ने जोगीदान भेंतर भाळस्यो भगवान ने*
*समजो विचारो तो सनातन धर्म आ समजाय छे*
*ए थी अहो नीश ॐकारे थीर आतम थाय छे*.05
(आ प्रथमी आकाश खळखळ वेहतुं पांणी सुर्य नारायण मांथी वरही रहेल आ आग ने अने मंद मंद लेहराई रहेल आ पवन ने ए पांचेय तत्वो जांणे प्रांण ने परखी रह्या छे अने पिंडे शो ब्रह्मांडे प्रमांणे भितर नी यात्रा करतां सनातन ईश्वर के जेनुं कोई नाम न कही सकाय तेनी प्रतीती थाय छे अने ए योग नी समज थी सनातन धर्म ने समजाय छे त्यारे एकाक्षरी मंत्र ॐ कार ना ध्वनी तरंग साथे आत्मा स्थिर थाय)
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