कडी निंदा अब बहुत हुई
अब चलने दो हथियारों को
बातचीत समजौता छोड़ो
अब गोली मारो गद्दारों को
खुर्सी खुर्सी का खेल छोड
अब सोचो देश के प्यारों को
वीर सरहद पर शिशक रहे
अब हाँ कहदो यलगारों को
बस हुआ अब और नहीं
अब हमसे सहा जाता
कायर बन भारत माँ के
बेटों से नहीं रहा जाता
राजनीती छोड़ कभी उन
घरों में भी जाया करो
जिनके वीर सीमा पे खड़े
उनकी भी खबर लाया करो
शांति पसंद हैं हम पर इस
कायरता के साथ नहीं
ऐसे खामोश बने रहना ये
भारत का इतिहास नहीं
शांति अगर चाहिए तो एक
क्रांति जरूर लानी होगी
इन चंद इंसानी दुश्मनों को
उनकी जगह बतानी होगी
✍🏻देव गढवी
नानाकपाया-मुंद्रा
कच्छ
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