*||रचना:वरसाद नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया||*
*||कर्ता:मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||*
*वरसादी ने कारणे बनास मा जे पुर आव्यू एमा घणाय ना जीव जता रया,घणा ने ईजा थै,घणा ना पाक बगड़ी गया तो घणाय रखड़ी पड्या,कुदरत ना आवा केर पर भगवान ने जराय दया न आवी*
वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया(टेक)
जीव हण्या जोने,जेह जीवताता,
आतम तू आधार,
विफरी मारया कैक ने वेगे,
ध्रुजवी नाखी धार,
वहावी नीर विखेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,
वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,(1)
कैक बहेनो ए भाई ने खोया,
ममताए कोई बाळ,
घर मोभी जेना एक अजवाळा,
एवा कैक पिता ने काळ,
भरखी ने मोत ने भेर्या,हरया ना तो जीव का हेरया,
वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया.(2)
धान खेडु ना खोरवी खाधा,
अने अन्न दाणाय अपार,
भूख प्यासी बन भमता कैको,
रंक थया घर बार,
विरह ना द:ख ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,
वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,(3)
रझडाया एना रंग राजीना,
ने *मीत*खोया मन मार,
स्थिर थिए समसान सरजाणु,
ठेर पड्या नीर ठार,
कुदरत माथे कोप कहेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,
वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,(4)
*🙏~~~मितेशदान(सिंहढाय्च)~~~🙏*
*कवि मीत*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें