■◆◆◆●चारण वाहिको विश्व बखाने ●◆◆◆■
।। छंद : सवैया ।।
आदहि चारण लच्छन यावर, द्वेश नहि निज ज्ञाति पे धारे,
याचन आश रखे नहि अंतर, ध्यान निरन्तर चंडीको धारे,
आफत काल रखे द्रढ याकिन, विशहथीको न नाम विसारे,
"जेतहमाल"सबे जग जाहर,यावर चारण कुल उचारे .(1)
सम्प कुटुंब सनेह सबे पर,धीर सदा कुल लाज वधारे,
श्रेष्ठ विचार सन्तोष सदा मन,लोभ व्रती चित्तमे न लगारे,
लांच कबु नहि चोरी लुचापन, नीति ग्रहे रु अनीति निवारे,
"जेतहमाल"सबे जग जाहर,यावर चारण कुल उचारे .(2)
आहव में अति शूर अनुपम ,विद्यामे श्रेष्ठ पण्डित बखाने,
क्रोध अकाम करे नहि को पर,मस्त सदा कुल के अभिमाने,
चाडी रु निन्दा कबु नहि चाहत, आलस नीन्द न देत बढ़ाने,
"जेतहमाल" करे न खुशामत, चारण वाहिको विश्व बखाने.(3)
दम्भ प्रपंच न रंच करे दिल,जात की महेनत उत्तम जाने,
दील उदार दयाल अति,उपकार करे निज शक्ति प्रमाने,
जीव गये पर झुठ न भाखत, राखत रीत रिवाज पुराने,
"जेतहमाल" कहे जय कारक, जग्त सबे वही चारण जाने .(4)
और को छिद्र कबु न उघारत, बिशहथी जश काव्य बनावे,
दुहिता दाम न चाहत है दिल, बोलीके बैन नहि बदलावे,
लग्न अयोग्य करे न कबु जग,बंस भले अपनों मिटि जावे ,
"जेतहमाल" कहे वोहि चारण, कुल दिवाकर श्रेष्ठ कहावे.(5)
रचयिता: चारण कवि जेतदान गोविंदजी बाटी -विरसोडा
प्रेसक टाईप:
कवि पुत्र नरहरदान जेतदानजी बाटी (विरसोडा)गांधीनगर
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