*|| रचना : मेनका वर्णन ||*
*|| कर्ता: मितेशदान गढवी(सिंहढाय्च) ||*
*||छंद : कमंद सवैया ||*
*(दुहा)*
*नमणी हूती नार,स्वर्ग तणी ए सुंदरी,*
*शुशीलता नो सार,मीत वखाणे मेनका*
*एवी न कोई अप्सरा,जोई न कोइये जाणी,*
*वखते ख़ूब वखाणी,मीत सुजावे मेनका*
*सवैया*
स्वर्ग समी अखियात सोहावत,अंग जड़्यु सुरवण सु मोती
चंद समी शीत रात सोहावत,तृण भीनु मुख स्मित पिरोती,
तेग समी अणी धार सोहावत,काटत चित कु मीत सु होती,
मोहित चाह रति सम सोहन जीतन प्रीत से प्राण सजौति,
*(चेहरा)*
ज्यो नभ सुर्य को शिर जड़े,सुर्य साधत प्रौढ़ लगे सुरवाणी,
ज्यो पंक जागत रूप जडे पंक पान समु मलकावत पाणी,
ज्यो तरुवा धर लील जड़े तरु डाल शिखा सरकावत ताणी,
त्यों मुख छाप मढ़े रूप जे हर प्रीत यू मीत की चित ले जाणी,
*(आँखे)*
केश कटु निल आँचल कैद,विदे नित प्रेम का वे'ण वछुटे,
मेंश लगे झलके मुख भेद,रिदै जीत मन्न से तार न टूटे,
मोह कजे हथियार मथ्थे,मुख्यांग लगावत प्रीत मुकुटे,
घेंन सु रेन चढ़ावत है घट,नैण ऐसा *मीत* दर्श नखुटे,
*(ओष्ठ)*
चंदन शीत शु चाहत चित,प्रतीत मुखा पर पामत प्रीतू,
वंदन कीत शब्द सु वित्त,सरित समु वेण सामत रीतु,
राखत बोल समु रव रीत,चरीत की भीत को आप छबीतू,
साजन की सुर जीत समावत,हेत मुले मीत काट हरितू,
*(हरितू-अग्नि)*
*(रूप)*
छाव तरु छब रीत छले,अरु हेत का जाल बिछाव अचंबित,
घाव जरू दल मीत गले,रूप नार मयूरीय नाच रमंकित,
सोल सजी शणगार शुभांगी,कैयिम'धु तन कंठ कमंदिय,
रूप राधिकेय रास रमे तट बंसीय श्याम को मुख बजंतिय,
*(शुभांगी-रति का दूसरा नाम)*
*(केयिम=स्वभाव,मधु= मीठप,)*
*(कैयिम'धु=मीठो स्वभाव)*
*(कमंद- सवैया नी जात नो एक छंद,)*
*🙏~~~मितेशदान(सिंहढाय्च)~~~🙏*
*कवि मीत*
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