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23 सितंबर 2016

जोगीदान गढवी (चडीया) कृत चारण निति सतक ना दोहरा

*प्रेम भावे थी पिरहियुं, उतरे कोठे अन्न*
तो
*मांणह केरुंय मन्न, जुमवा मांडे जोगडा*
( जो घरमां शांति मय वातावरण ईच्छता होव तो स्त्रीयोये घरना तमाम सभ्यो ने खुब प्रेम भावथी भोजन पीरही ने जमाडवुं, जेनाथी बधानुं  मन झुमी उठसे, आ निति बघे लागु पडे छे)
*चूको कदी ना चारणा, वांणी उपर विवेक*
*आप बळुकी एक, जीभ अमांणी जोगडा*
(चारणोये क्यारेय पोतानी वांणी पर थी संयम न चुकी ने विवेक पुर्ण वातज करवी, कारण के चारण नी जीभ बहु बळवान होय छे,अने अ विवेकी वांणी अणधार्या परिणामो ने नोतरनार होय छे)
*कदिय न ककळाववी, आंतरडी ने  ऐम*
*राखी सौ पर रेम, जीवन सुधारो जोगडा*
(क्यारेय कोईनी आंतरडी न ककळाववी के न आपडी आंतरडी ककळवा देवी, कारण के जो कोकनी आंतरडी ककळे तो आपणी बुराई बेहे, ने जो आपडी चारण नी आंतरडी ककळे तो सामेना नो वंश वेलो मुळथी उखड़ी जाय, माटे सौ पर दयाभाव राखी ने चारणे देव कोटीनुं जीवन व्यतित करवुं )
*ठारो काळज ठाकरा, तो, सोनल रेसे साथ*
*हजार ऐना हाथ,ईतो, जाय ओवारी जोगडा*
(कोक ना काळजां ठारस्यो तो मा सोनबाई सदाय साथे रहेसे, अने एटलुंज नई ए एटली राजी थसे के एना हजारो हाथ थी तमारा ओवारणा लेशे )
*आखुं दळ हो आंधळुं, तो एमा, कांणो राजा कोक*
*मळसे एवाय मोक, पण, जरी न चळवुं जोगडा*
(क्यारेक एवा मोका पण हसे के ज्यारे आखु कटक आंधळु हसे पण गोतवा जतां एनो राजाय कांणो मळे, कोय वाते समजता न होय तेवुं बने तो पण चारणे चलीत थई ने पाता पणुं न गुमाववु )
*(जोगीदान गढवी चडीया कृत चारण निति सतक ना दोहरा)*

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