*जिंदगी*
जींदगी से हमें चंद शिकायतें भी है
दबी-कुचली सी कई ख्वाहीशें भी है
हंस भी लीया करते है यारों के साथ
खुद रो-कर हंसाने की आदत भी है
ये वक्त की फितरत की बेवफाई करे
हमें फिर भी वफा की हसरतें भी है
युं चंद ठोकरों से नही बिखर ने वाले
गीरकर संभलने की ताकत भी है
कई बार सवालात करते है आईने से
आईने में "देव" सी आहट भी है
✍🏻देव गढवी
नानाकपाया-मुंदरा
कच्छ
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें