*मोरस बनी*
मोरस बनी गणी जावुं मारे
सबरस बनी भणी जावुं
दोरडा थी बंधाता पशुओ
मारे प्रेम तांतणे बंधावुं
मोरस बनी .....
तुरा गायन नहीं करवा मारे
जोने गीत मधुरा रे गावुं
आ देह ने बनावी हुं गंगोतरी
मारे आतम ने नवडावुं
मोरस बनी .....
आ प्राण थी ऐ प्रीय छे मारे
भगवती ना शरणे जावुं
चौदे लोक जाणुं नहीं "देव"
मारे ऐमां नथी भरमावुं
मोरस बनी .....
शब्दार्थ:
मोरस=खांड,साकर
सबरस=नमक
तुरु: स्वादहीन,अजुगतो स्वाद
✍🏻देव गढवी
नानाकपाया-मुंदरा
कच्छ
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