.

"जय माताजी मारा आ ब्लॉगमां आपणु स्वागत छे मुलाक़ात बदल आपनो आभार "
आ ब्लोगमां चारणी साहित्यने लगती माहिती मळी रहे ते माटे नानकडो प्रयास करेल छे.

આઈશ્રી સોનલ મા જન્મ શતાબ્દી મહોત્સવ તારીખ ૧૧/૧૨/૧૩ જાન્યુઆરી-૨૦૨૪ સ્થળ – આઈશ્રી સોનલ ધામ, મઢડા તા.કેશોદ જી. જુનાગઢ.

Sponsored Ads

Sponsored Ads

.

Notice Board


Sponsored Ads

31 जुलाई 2017

ओछु भणेला गढवी दंपतिना बे संतानो कलास वन अधिकारी बन्या

ओछु भणेला गढवी दंपतिना बे संतानो कलास वन अधिकारी बन्या

जो तमारा पासे चारणी साहित्य , रचनाओ, ऑडियो , पुस्तक,  होय तो आप ब्लॉग पर मुकवा मांगता होय तो मोकलवा विनंती छे.

Email - vejandh@gmail.com

Mo - 9913051642


      तमारा कोई Whatsapp ग्रुपमां चारणी साहित्यअवनवा समाचाररचनाओ, उपयोगी माहिती तथा सरकारी नोकरी जेवा अपडेट मेळववा होय तो 9913051642 नंबर ने ग्रुप मां ऐड करो.
आ मेसेज चारण समाजना दरेक भाईओ साथे अचूक शेर करशो जेथी वधुमां वधु ग्रुपना चारण समाजना भाईओ आ माहितीनो फायदो लई शके.
                         सहकार बदल आपनो आभार

➡ चारणी साहित्य ब्लॉग मां काई फेरफार के आपना सूचन के अभिप्राय आपवा नम्र विनंती छे

                                          वंदे सोनल मातरम

शिव ने भजो जीव दिन रात


શિવ ને ભજો જીવ દિન રાત (શિવ-સ્તુતિ)
       - કવિ 'પ્રદીપગઢવી



છે શક્તિ કેરો સાથ જટા પર ગંગ બહે દિન-રાત,
ડાક-ડમરું ના ડમડમાટ શંખ ના નાદ કરે છે વાત.

                               શિવ ને ભજો જીવ દિન રાત...


કાર્તિક-ગણેશ શિવ ના બાળ ઉમૈયા અર્ધાંગીની નાર,
દશાનન ભજે શિવ ના નામ તેઓ પણ કરે છે એક જ વાત

                               શિવ ને ભજો જીવ દિન રાત...


શિવજી શોભે છે કૈલાશ ત્યાં વસે દેવો-ઋષિ-રાજ,
ચારણો નંદી ચરાવે ત્યાંજ કરે છે ચાર વેદ ની વાત,

                                શિવ ને ભજો જીવ દિન રાત...


કરે છે શિવજી તાંડવ નાચ દિગપાળો ના જુકતા હાથ,
જોઇને દેવો ફફડે આજ ભોળા ને વિનવે બેઉ હાથ,

                                શિવ ને ભજો જીવ દિન રાત...


હરિ ઓમ હર હર ના જ્યાં નાદ ત્યાં શશી-ભાણ ઉગે દિન-રાત,
તુજ વિણ દીપ "પ્રદીપ" ના વાત શિવ છો કણ કણ માં હયાત ,

                                શિવ ને ભજો જીવ દિન રાત...
     
     - કવિ 'પ્રદીપગઢવી...
   (રિ. રેંજ ફોરેસ્ટ ઓફિસર)
મુ. ધુનાનાગામ હાલે માંડવી-કચ્છ.



ટાઈપ બાય :- આલાપ પ્રદીપભાઈ ગઢવી માંડવી-કચ્છ.




ઉપર લખેલી શિવ-સ્તુતિ શ્રી પ્રદિપભાઈ ગઢવી દ્વારા લખાયેલી છે અને તેઓ પોતેજ તેનું સંગીત આપેલું છે અને પોતેજ ગાયેલી છે.


આ સાથે તેમના દ્વારા જ ગવાયેલી શિવ સ્તુતિ ડાઉનલોડ કરવા માટે Click Here

આપનો  પવિત્ર શ્રાવણ માસ  નો બીજો સોમવાર શિવ મહી બને અને ભોલેનાથ ની દયા હમેશાં તમારા ઉપર રહે એવી  શુભેચ્છા સહ તમામ ને જય માતાજી જય સોનલ.

जो तमारा पासे चारणी साहित्य , रचनाओ, ऑडियो , पुस्तक,  होय तो आप ब्लॉग पर मुकवा मांगता होय तो मोकलवा विनंती छे.

Email - vejandh@gmail.com

Mo - 9913051642


      तमारा कोई Whatsapp ग्रुपमां चारणी साहित्यअवनवा समाचाररचनाओ, उपयोगी माहिती तथा सरकारी नोकरी जेवा अपडेट मेळववा होय तो 9913051642 नंबर ने ग्रुप मां ऐड करो.
आ मेसेज चारण समाजना दरेक भाईओ साथे अचूक शेर करशो जेथी वधुमां वधु ग्रुपना चारण समाजना भाईओ आ माहितीनो फायदो लई शके.
                         सहकार बदल आपनो आभार

➡ चारणी साहित्य ब्लॉग मां काई फेरफार के आपना सूचन के अभिप्राय आपवा नम्र विनंती छे


                                          वंदे सोनल मातरम

30 जुलाई 2017

नागदमण ग्रंथ विमोचन अहेवाल

आजे ता.30-07-2017 ना रोज भकतकविश्री सांयाजी झूला रचित नागदमण ग्रंथ विमोचन समारोह अटीरा, अमदावाद खाते योजायेल
पुस्तक मेळववा माटे संपर्क :-
डॉ. दिलीपभाई चारण
मो -  9825148840


जो तमारा पासे चारणी साहित्य , रचनाओ, ऑडियो , पुस्तक,  होय तो आप ब्लॉग पर मुकवा मांगता होय तो मोकलवा विनंती छे.

Email - vejandh@gmail.com

Mo - 9913051642


      तमारा कोई Whatsapp ग्रुपमां चारणी साहित्यअवनवा समाचाररचनाओ, उपयोगी माहिती तथा सरकारी नोकरी जेवा अपडेट मेळववा होय तो 9913051642 नंबर ने ग्रुप मां ऐड करो.
आ मेसेज चारण समाजना दरेक भाईओ साथे अचूक शेर करशो जेथी वधुमां वधु ग्रुपना चारण समाजना भाईओ आ माहितीनो फायदो लई शके.
                         सहकार बदल आपनो आभार

➡ चारणी साहित्य ब्लॉग मां काई फेरफार के आपना सूचन के अभिप्राय आपवा नम्र विनंती छे

                                          वंदे सोनल मातरम

भुजमां चारण समाजनी अद्यतन बोर्डिंग माटे वधु दाननी जाहेरात

भुजमां चारण समाजनी अद्यतन बोर्डिंग माटे वधु दाननी जाहेरात

|| बनास दुर्घटना || || कर्ता मितेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||

*||रचना:वरसाद नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया||*
   *||कर्ता:मितेशदान महेशदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||*

*वरसादी  ने कारणे बनास मा जे पुर आव्यू एमा घणाय ना जीव जता रया,घणा ने ईजा थै,घणा ना पाक बगड़ी गया तो घणाय रखड़ी पड्या,कुदरत ना आवा केर पर भगवान ने जराय दया न आवी*

वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया(टेक)

जीव हण्या जोने,जेह जीवताता,
                   आतम  तू  आधार,
विफरी मारया कैक ने वेगे,
                    ध्रुजवी नाखी धार,
वहावी नीर विखेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,
वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,(1)

कैक बहेनो ए भाई ने खोया,
                    ममताए कोई बाळ,
घर मोभी जेना एक अजवाळा,
                  एवा कैक पिता ने काळ,
भरखी ने मोत ने भेर्या,हरया ना तो जीव का हेरया,
वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया.(2)

धान खेडु ना खोरवी खाधा,
                 अने अन्न  दाणाय अपार,
भूख  प्यासी बन भमता कैको,
                        रंक थया घर बार,
विरह ना द:ख ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,
वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,(3)

रझडाया एना रंग राजीना,
                  ने *मीत*खोया मन मार,
स्थिर थिए समसान सरजाणु,
                  ठेर पड्या  नीर    ठार,
कुदरत माथे कोप कहेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,
वरसादी नीर ते वेरया,हरया ना तो जीव का हेरया,(4)

*🙏~~~मितेशदान(सिंहढाय्च)~~~🙏*

  *कवि मीत*

मैं चारण हूँ सत्य के सिवा लिखता नही डॉ प्रेम दान भारतीय। चराण गाडण

मैं चारण हूँ सत्य के सिवा लिखता नही
 इसलिए सम्मेलनों में कहीं दीखता नहीं

नहीं आती सियासत न मैं  दम्भ भरता हूँ
मेरे  ढंग से चारणतत्व पर काम करता हूँ

न पद से न प्रतिष्ठा से न प्रलोभन से जी
न कोई खरीद सकता है  मैं बिकता नहीं 1

 मैं चारण हूँ सत्य के सिवा लिखता नही
 इसलिए सम्मेलनों में कहीं दीखता नहीं  


सत्य सुनने की चारणों में आदत नही रही
पहली सी जुबान ठकुराई शराफत नहीं रही

मां हिंगलाज के चरणों के सिवा झुकता नही
 मैं चारण हूँ सत्य के सिवा लिखता नही
 इसलिए सम्मेलनों में कहीं दीखता नहीं 2

नहीं पद की कोई इच्छा न सम्मान की है
न भूख मंचों की ना  भूख पहचान की है

मैं मंजिल पाए बिना कभी भी रुकता नहीं
 मैं चारण हूँ सत्य के।  सिवा लिखता नही

 इसलिए सम्मेलनों में कहीं दीखता नहीं 3

मुझ से बड़े ग्यानी भी सम्मेलनों में आएंगे 
चारणाचार के सुंदर   किस्से भी  सुनाएंगे

सच कोई सुनेगा नहीं झूठ मैं बोलता नहीं
 मैं चारण हूँ सत्य के सिवा लिखता नही
 इसलिए सम्मेलनों में कहीं दीखता नहीं 4

अब तक क्या सुधार हुआ कोई बताये जरा
सुधारवादी पदाधिकारी आत्मा जगाये जरा

कितनी परित्यक्ताओं से मिले कोई कहता नही
 मैं चारण हूँ सत्य के सिवा लिखता नही
 इसलिए सम्मेलनों में कहीं दीखता नहीं 6

डॉ प्रेम दान भारतीय। चराण गाडण
गाँव धाणदा
जिला पाली 
राजस्थान
संपर्क
9925606095

चारण सम्मेलन का मोल तब होगा डॉ प्रेम दान भारतीय चारण (गाडण )

चारण सम्मेलन  का मोल तब होगा डॉ प्रेम दान  भारतीय चारण (गाडण )
हर चारण के हाथ सुधार का गंगाजल होगा
तब चारण सम्मेलन को बुलाना सफल होगा

न कोई बड़ा न कोई छोटा न नेता न लड़ाई होगी
कुरीतियों के खिलाफ हर चारण की चढ़ाई होगी

हर चारण युवा के साथ जाति का संबल होगा
तब ही चारण सम्मेलन   बुलाना सफल होगा 1      

जब हर चारण की  पीड़ा का इलाज होगा
जब हर चारण विधवा के घर अनाज होगा

चारण का चारण का हर जगह जब बल होगा
तब चारण सम्मेलन को बुलाना सफल होगा 2

बिना टिका सम्मेलनों में ही जब सगाइयाँ होगी
बेटियों का सम्मान सुखी सब ठकुरानिया होगी

सुधारों के नाम पर न कपट न कोई छल होगा
तब चारण सम्मेलन को   बुलाना सफल होगा 3

मृत्युभोज ,विवाह में दौलत का न दिखावा होगा
सभी खींचे चले आएंगे चारण न बुलावा  होगा

चारणाचार का संम्मान मंचों से पल पल होगा
तब चारण सम्मेलन   को बुलाना सफल होगा 4

न पद की महामारी होगी न कोई विवाद होगा
सुधारों की चर्चा होगी निर्दोष जब संवाद होगा

मंचों पे न धन  न पद न ओकात का बल होगा
तब चारण सम्मेलन को  बुलाना सफल होगा 5

नई पीढ़ी को नए विचारों को जब निमंत्रण होगा
न भेदभाव न राजनीती मंच  इनसे  स्वतंत्र होगा

सटीक निर्णय होंगे न आस्वास्नो का जंगल होगा
तब चारण सम्मेलन को   बुलाना सफल होगा 6

समृध्द होंगे  चारण  न लाचार चारणाचार होगा
शक्ति की उपासना होगी घरों में  शिष्टाचार होगा

न टीके की निशर्म मांग न दहेज दलदल होगा
तब चारण सम्मेलन  को बुलाना सफल होगा 7

 डॉ प्रेम दान  भारतीय चारण (गाडण )
गाँव धाणदा 
जिला पाली राजस्थान
सम्पर्क
9925606095

29 जुलाई 2017

चारण कवी दुर्शाजी आढ़ा


प्रथम हिन्दुवादी कवि दुरसा जी आढा
दुरसाजी आढा का जन्म वि स १५९२ माघ सुदी चवदस को मारवाड राज्य के सोजत परगने के पास धुन्दला गांव में हुआ।इनके पिताजी मेहाजी आढा हिंगलाज माता के अनन्य भक्त थे जिन्होने पाकिस्तान के शक्तिपीठ हिंगलाज की तीन बार यात्रा की।मां हिंगलाज के आशीर्वाद से उनके घर दुरसाजी जैसा कवि का जन्म हुआ।गौतमजी व अढ्ढजी के कुल में जन्म लेने वाले दुरसाजी आढा की माता धनी बाई बोगसा गोत्र की थी जो वीर व साहसी गोविन्द बोगसा की बहिन थी।भक्त पिता मेहाजी आढा दुरसाजी की  छ वर्ष की आयु में फिर हिंगलाज यात्रा पर चले गये इस बार इन्होने संयास धारण कर लिया। कुल मिलाकर दुरसाजी आढा का बचपन संघर्ष व अभाव ग्रस्त रहा। बगडी के ठाकुर प्रताप सिह ने इनकी प्रतिभा प्रभावित होकर अपनी सेवा में रखा यही पर इनकी प्रारम्भिक शिक्षा हुई ।आपको अपने दीर्घ जीवनकाल में अपरिमित धन ,यश एवं सम्मान मिला।
दुरसाजी को प्राप्त सांसण में जागीर धुंदला ,नातल कुडी,पांचेटिया, जसवन्तपुरा,गोदावास,हिंगोला खूर्द,लुंगिया,पेशुआ,झांखर,साल,ऊण्ड, दागला,वराल,शेरूवा,पेरूआ, रायपुरिया,डूठारिया,कांगडी,तासोल,सिसोदा ।इनके अलावा बीकानेर के राजा रायसिंह ने इनको चार गांव सांसण में दिये थे जिनकी पुष्टि बीकानेर के इतिहास से होती है।
इनाम के रूप नकद राशि
करोड पसाव पुरूस्कार
१करोड पसाव रायसिंह जी बीकानेर ने
१ करोड पसाव राव सूरताण सिरोही ने
१ करोड पसाव मानसिह आमेर ने
१ करोड पसाव महाराणा अमरसिंह मेवाड ने
१ करोड पसाव महाराजा गजसिंह मारवाड ने
१ करोड पसाव जाम सत्ता ने
३ करोड पसाव अकबर बादशाह ने दिये जिन्हे जनकल्याण में खर्च किये अर्थात् तालाबो, कुओ ,बावडियों इत्यादि के निर्माण में व्यय किया।
लाख पसाव पुरूस्कार
दुरसाजी को कई लाख पसाव मिले जिन्हे सिरोही महाराव राजसिंह,अखेराजजी,मुगल सेनापति मोहबत खान व बैराम खान से प्राप्त हुए ।
दुरसाजी आढा ने पुष्कर के चारण सम्मेलन में १४ लाख रूपये खर्च करके समाज हित का कार्य किया।
विरच्यो प्रबंध वरणरो,
सूरज शशिचर साख।
तठै खस्व दुरसा तणा,
लागा चवदा लाख।।
आउवा धरणा के अग्रज
दुरसाजी आढा के नेतृत्व में आउवा का धरणा वि स १६४३ के चैत्र मास के शुक्ल पक में हुआ।इनके धरणे में इनके मुख्य सहयोगी अक्खाजी,शंकरजी बारहठ,लक्खाजी आदि समकालीन चारण थे सबसे ज्यादा चवालीस खिडिया गोत्र के चारणों  शहादत दी।दुरसाजी आढा ने गले में कटारी खाई। धागा करने के बाद भी देवी कृपा से वे बच गये। उन्होने मोटा राजा उदयसिंह को दिल्ली के दरबार में सरेआम लज्जित किया।गले में कटारी का घाव खाने से दुरसाजी के गले की आवाज विकलांग हो गई। इस पर अकबर ने पूछा कि आपकी आवाज कैसे बिगड गई ? तब उन्होने कहा कि कुत्ते ने काट लिया था इतना बडा कुत्ता कैसे हो सकता है तो उन्होने मोटा राजा की तरफ संकेत किया।
दुरसाजी आढा के निर्माणसिरोही
पेशुआ
१ दुरसालाव पेशुआ
२ बालेश्वरी माता मंदिर
३ कनको दे सती स्मारक
४ पेशुआ का शासन थडा
झांखर
१ फुटेला तालाब
२ झांकर का शासन थडा
रायपुरिया
१ बावडी का निर्माण जो मेवाड रियासत का सांसण गांव था जहां से इनके लिए पांचेटिया (मारवाड )में पानी पहुचता था क्योकि आउवा धरणे के बाद उन्होने मारवाड के पानी त्याग कर दिया था
पांचेटिया
१ किसनालाव
२ शिव मंदिर
३ दुरसश्याम मंदिर
४ कालिया महल
५ धोलिया महल
हिगोंला खुर्द
१ हिगोंला के महल
२ हिगोंला का तालाब
अचलेश्वर शिव मंदिर - आबू पर्वत के अचलेश्वर जी के शिव मंदिर में जहां शिवजी के अंगूठे की पूजा की जाती है वहां मंदिर में शिव जी के सामने नंदी के पास दुरसाजी आढा की पीतल की मूर्ति लगी हुई है जिस पर लगे लेख के अनुसार  इनकी जीवित अवस्था में इस मूर्ति की स्थापना हुई।ऐसा सम्मान किसी कवि को नही मिला।
पद्मनाथ मंदिर सिरोही- पैलेस के सामने इस मंदिर के बाहर हाथी पर सवार इनकी मूर्ति भी बडी महत्वपूर्ण है जो विष्णु मंदिर  के बाहर लगी हुई है जो सदियो से उनके अतुल्य सम्मान का प्रतीक है।
दुरसाजी आढा का देवलोक गमन वि स १७१२ को होना माना जाता है।इस प्रकार १२० वर्ष की दीर्घायु उन्होने पाई। इस दीर्घायु में उन्होने अतुलनीय साहित्य का सर्जन करके महाराणा प्रताप ,सिरोही के राव सूरताण व मारवाड के राव चन्द्रसेन व नागोर के अमरसिंह राठौड पर काव्य रचना करके इन्हे इतिहास व साहित्य में अमर कर दिया उन्होने महाराणा प्रताप बिरद छिहत्तरी की रचना की जो डिंगल की सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है।
उनका कहा छप्पय जो इस प्रकार जो उन्होने ने अकबर के सम्मुख कहा था।
अस लेगो अणदाग, पाघ लेगो अणनामी।
गो आडा गवडाय, जिको बहतो धुरबांमी।।
नवरोजे नह गयो, न गौ आतसा नवल्ली।
न गौ झरोखां हेठ, जेथ दुनियांण दहल्ली।।
गहलोत राणा जीती गयो, दसण मूंद रसणा डसी।
नीसास मूक झरिया नयण, तो म्रत साह प्रतापसी।।

चारण कवी दुर्शाजी आढ़ा

दुर्शाजी आढ़ा नामक चारण कवी ने अकबर
की सभा में अकबर के समक्ष खड़े होकर बिना डरे
महाराणा प्रताप के नाम से 76 दुहे बना कर सुनाये
थे जो "बिरद छहुतरि" के नाम से जाना गया।
( चारण कवी दुरसाजी आढा रचित महाराणा प्रताप
की प्रशस्ती के दोहे - संपुर्ण 'बिरद छहुंतरी' )

अलख धणी आदेश, धरमाधार दया निधे,
बरणो सुजस बेस, पालक धरम प्रतापरो. (१)
गिर उंचो गिरनार, आबु गिर ओछो नही ;
अकबर अघ अंबार, पुण्य अंबार प्रतापसीं. (२)
वुहा वडेरा वाट, वाट तिकण वेहणो विसद ;
खाग, त्याग, खत्र वाट, पाले राण प्रतापसीं. (३)
अकबर गर्व न आण, हिन्दु सब चाकर हुआ ;
दिठो कोय दहिवाण, करतो लटकां कठहडे. (४)
मन अकबर मजबूत, फुट हिन्दुआ बेफिकर ;
काफर कोम कपूत, पकडो राण प्रतापसीं. (५)
अकबर किना याद, हिन्दु नॄप हाजर हुआ ;
मेद पाट मरजाद, पोहो न आव्यो प्रतापसीं. (६)
मलेच्छां आगळ माथ, नमे नही नर नाथरो,
सो करतब समराथ, पाले राण प्रतापसी. (७)
कलजुग चले न कार, अकबर मन आंजस युंही ;
सतजुग सम संसार, प्रगट राण प्रतापसीं. (८)
कदे न नमावे कंध, अकबर ढिग आवेने ओ ;
सुरज वंश संबंध, पाले राण प्रतापसी. (९)
चितवे चित चितोड, चित चिंता चिता जले ;
मेवाडो जग मोड, पुण्य घन प्रतापसीं. (१०)
सांगो धरम सहाय, बाबर सु भिडीयो बहस ;
अकबर पगमां आय, पडे न राण प्रतापसी. (११)
अकबर कुटिल अनित, और बटल सिर आदरे ;
रघुकुल उतम रीत, पाले राण प्रतापसी. (१२)
लोपे हिन्दु लाज, सगपण रों के तुरक सु ;
आर्य कुल री आज, पुंजी राण प्रतापसीं. (१३)
सुख हित शिंयाळ समाज, हिन्दु अकबर वश हुआ ;
रोशिलो मॄगराज, परवश रहे न प्रतापसी. (१४)
अकबर फुट अजाण, हिया फुट छोडे न हठ ;
पगां न लागळ पाण, पण धर राण प्रतापसीं. (१५)
अकबर पत्थर अनेक, भुपत कैं भेळा कर्या ;
हाथ न आवे हेक, पारस राण प्रतापसीं. (१६)
अकबर नीर अथाह, तह डुब्या हिन्दु तुरक ;
मेंवाडो तिण मांह, पोयण राण प्रतापसीं. (१७)
जाणे अकबर जोर, तो पण ताणे तोर तीड ;
आ बदलाय छे ओर, प्रीसणा खोर प्रतापसीं. (१८)
अकबर हिये उचाट, रात दिवस लागो रहे ;
रजवट वट सम्राट, पाटप राण प्रतापसीं. (१९)
अकबर घोर अंधार, उंघांणां हिन्दु अवर ;
जाग्यो जगदाधार, पहोरे राण प्रतापसीं. (२०)
अकबरीये एकार, दागल कैं सारी दणी ;
अण दागल असवार, पोहव रह्यो प्रतापसीं. (२१)
अकबर कने अनेक, नम नम निसर्या नरपती ;
अणनम रहियो एक, पणधर राण प्रतापसीं. (२२)
अकबर है अंगार, जाळे हिन्दु नृप जले ;
माथे मेघ मल्हार, प्राछट दिये प्रतापसीं. (२३)
अकबर मारग आठ, जवन रोक राखे जगत ;
परम धरम जस पाठ, पीठीयो राण प्रतापसीं. (२४)
आपे अकबर आण, थाप उथापे ओ थीरा ;
बापे रावल बाण, तापे राण प्रतापसीं. (२५)
है अकबर घर हाण, डाण ग्रहे नीची दिसट ;
तजे न उंची ताण, पौरस राण प्रतापसीं. (२६)
जग जाडा जुहार, अकबर पग चांपे अधिप ;
गौ राखण गुंजार, पिले रदय प्रापसीं. (२७)
अकबर जग उफाण, तंग करण भेजे तुरक ;
राणावत रीढ राण, पह न तजे प्रतापसीं. (२८)
कर खुशामद कुर, किंकर कंजुस कुंकरा ;
दुरस खुशामद दुर, पारख गुणी प्रतापसीं. (२९)
हल्दीघाटी हरोळ, घमंड करण अरी घणा ;
आरण करण अडोल, पहोच्यो राण प्रतापसीं. (३०)
थीर नृप हिन्दुस्तान, ला तरगा मग लोभ लग ;
माता पुंजी मान, पुजे राण प्रतापसीं. (३१)
सेला अरी समान, धारा तिरथ में धसे ;
देव धरम रण दान, पुरट शरीर प्रतापसीं. (३२)
ढग अकबर दल ढाण, अग अग जगडे आथडे ;
मग मग पाडे माण, पग पग राण प्रतापसीं. (३३)
दळ जो दिल्ली हुंत, अकबर चढीयो एकदम ;
राण रसिक रण रूह, पलटे किम प्रतापसीं. (३४)
चित मरण रण चाय, अकबर आधिनी विना ;
पराधिन पद पाय, पुनी न जीवे प्रतापसीं. (३५)
तुरक हिन्दवा ताण, अकबर लागे एकठा ;
राख्यो राणे माण, पाणा बल प्रतापसीं. (३६)
अकबर मच्छ अयाण, पुंछ उछालण बल प्रबल ;
गोहिल वत गहेराण, पाथोनीधी प्रतापसीं. (३७)
गोहिल कुळ धन गाढ, लेवण अकबर लालची ;
कोडी दिये ना काढ, पणधर राण प्रतापसीं. (३८)
नित गुध लावण नीर, कुंभी सम अकबर क्रमे ;
गोहिल राण गंभीर, पण न गुंधले प्रतापसीं. (३९)
अकबर दल अप्रमाण, उदयनेर घेरे अनय ;
खागां बल खुमाण, पेले दलां प्रतापसीं. (४०)
दे बारी सुर द्वार, अकबरशा पडियो असुर ;
लडियो भड ललकार, प्रोलां खोल प्रतापसीं. (४१)
उठे रीड अपार, पींठ लग लागां प्रिस ;
बेढीगार बकार, पेठो नगर प्रतापसीं. (४२)
रोक अकबर राह, ले हिन्दुं कुकर लखां ;
विभरतो वराह, पाडे घणा प्रतापसीं. (४३)
देखे अकबर दुर, घेरा दे दुश्मन घणा ;
सांगाहर रण सुर, पेड न खसे प्रतापसीं. (४४)
अकबर तलके आप, फते करण चारो तरफ ;
पण राणो प्रताप, हाथ न चढे हमीरहर. (४५)
अकबर दुरग अनेक, फते किया नीज फौज सु ;
अचल चले न एक, पाधर राण प्रतापसीं. (४६)
दुविधा अकबर देख, किण विध सु घायल करे ;
पवंगा उपर पेख, पाखर राण प्रतापसीं. (४७)
हिरदे उणा होत, सिर धुणा अकबर सदा ;
दिन दुणा देशोत, पुणा वहे न प्रतापसीं. (४८)
कलपे अकबर काय, गुणी पुगी धर गौडीया ;
मणीधर साबड मांय, पडे न राण प्रतापसीं. (४९)
मही दाबण मेवाड, राड चाड अकबर रचे ;
विषे विसायत वाड, प्रथुल वाड प्रतापसीं. (५०)
बंध्यो अकबर बेर, रसत घेर रोके रीपुं ;
कन्द मुल फल केर, पावे राण प्रतापसीं. (५१)
भागे सागे भोम, अमृत लागे उभरा ;
अकबर तल आराम, पेखे राण प्रतापसीं. (५२)
अकबर जिसा अनेक, आव पडे अनेक अरी ;
असली तजे न एक, पकडी टेक प्रतापसीं. (५३)
लांघण कर लंकाळ, सादुळो भुखो सुवे ;
कुल वट छोड क्रोधाळ, पैड न देत प्रतापसीं. (५४)
अकबर मेगल अच्छ, मांजर दळ घुमे मसत ;
पंचानन पल भच्छ, पट केछडा प्रतापसीं. (५५)
दंतीसळ सु दुर, अकबर आवे एकलो ;
चौडे रण चकचुर, पलमें करे प्रतापसीं. (५६)
चितमें गढ चितोड, राणा रे खटके रयण ;
अकबर पुनरो ओड, पेले दोड प्रतापसीं. (५७)
अकबर करे अफंड, मद प्रचंड मारग मले ;
आरज भाण अखंड, प्रभुता राण प्रतापसीं. (५८)
घट सु औघट घाट, घडीयो अकबर ते घणो ;
ईण चंदन उप्रवाट, परीमल उठी प्रतापसीं. (५९)
बडी विपत सह बीर, बडी किरत खाटी बसु ;
धरम धुरंधर धीर, पौरुष घनो प्रतापसीं. (६०)
अकबर जतन अपार, रात दिवस रोके करे ;
पंगी समदा पार, पुगी राण प्रतापसीं. (६१)
वसुधा कुल विख्यात, समरथ कुल सीसोदिया ;
राणा जसरी रात, प्रगट्यो राण भलां प्रतापसीं.
(६२)
जीणरो जस जग मांही, ईणरो धन जग जीवणो ;
नेडो अपयश नाही,प्रणधर राण प्रतापसीं. (६३)
अजरामर धन एह, जस रह जावे जगतमें ;
दु:ख सुख दोनुं देह, पणीए सुपन प्रतापसीं. (६४)
अकबर जासी आप, दिल्ली पासी दुसरा ;
पुनरासी प्रताप, सुजन जीसी सुरमा. (६५)
सफल जनम सदतार, सफल जोगी सुरमा ;
सफल जोगी भवसार, पुर त्रय प्रभा प्रतापसीं.
(६६)
सारी वात सुजाण, गुण सागर ग्राहक गुणा ;
आयोडो अवसाण, पांतरेयो नह प्रतापसीं. (६७)
छत्रधारी छत्र छांह, धरमधार सोयो धरा ;
बांह ग्रहयारी बांह, प्रत नतजे प्रतापसीं. (६८)
अंतिम येह उपाय, विसंभर न विसारीये ;
साथे धरम सहाय, पल पल राण प्रतापसीं. (६९)
मनरी मनरे मांही, अकबर रहेसी एक ज ;
नरवर करीये नांही, पुरण राण प्रतापसीं. (७०)
अकबर साहत आस, अंब खास जांखे अधम ;
नांखे रदय निसास, पास न राण प्रतापसीं. (७१)
मनमें अकबर मोद, कलमां बिच धारे न कुट ;
सपना में सीसोद, पले न राण प्रतापसीं. (७२)
कहैजो अकबर काह, सेंधव कुंजर सामटा ;
बांसे से तरबांह, पंजर थया प्रतापसीं. (७३)
चारण वरण चितार, कारण लख महिमा करी ;
धारण कीजे धार, परम उदार प्रतापसीं. (७४)
आभा जगत उदार, भारत वरस भवान भुज ;
आतम सम आधार, पृथ्वी राण प्रतापसीं. (७५)
काव्य यथारथ कीध, बिण स्वारथ साची बिरद ;
देह अविचल दिध, पंगी रूप प्रतापसीं. (७६)

संतवाणी जुना जामथडा

संतवाणी जुना जामथडा

भकतकविश्री सांयाजी झुला रचित नागदमण ग्रंथ विमोचन

भकतकविश्री सांयाजी झुला रचित नागदमण ग्रंथ विमोचन



जो तमारा पासे चारणी साहित्य , रचनाओ, ऑडियो , पुस्तक,  होय तो आप ब्लॉग पर मुकवा मांगता होय तो मोकलवा विनंती छे.

Email - vejandh@gmail.com

Mo - 9913051642


      तमारा कोई Whatsapp ग्रुपमां चारणी साहित्यअवनवा समाचाररचनाओ, उपयोगी माहिती तथा सरकारी नोकरी जेवा अपडेट मेळववा होय तो 9913051642 नंबर ने ग्रुप मां ऐड करो.
आ मेसेज चारण समाजना दरेक भाईओ साथे अचूक शेर करशो जेथी वधुमां वधु ग्रुपना चारण समाजना भाईओ आ माहितीनो फायदो लई शके.
                         सहकार बदल आपनो आभार

➡ चारणी साहित्य ब्लॉग मां काई फेरफार के आपना सूचन के अभिप्राय आपवा नम्र विनंती छे

                                          वंदे सोनल मातरम

28 जुलाई 2017

भुज कच्छ खाते चारण समाजनी मीटींग

भुज कच्छ खाते चारण समाजनी मीटींग
ता.30-07-2017
समय :- सवारे 10-30 कलाके
स्थळ :- विश्रांति भवन, भानुशाली नगर भुज कच्छ
- भीमशी के.बारोट
मंत्रीश्री अखिल कच्छ चारण सभा

GPSC द्रारा लेवायेल कलास-1-2 नी परीक्षा परीणाम

GPSC द्रारा लेवायेल कलास-1-2 नी परीक्षा परीणाम
GPSC द्रारा लेवायेल कलास-1 & 2 (ADVT-9/2014-15) परीक्षानुं ता.28-07-2017 ना रोज जाहेर थयेल परीणाम मां चारण-गढवी समाजना जे उमेदवारो पास थयेल छे तेमनी माहिती

(1) श्री चेतन किर्तीकुमार  गढवी (मीसण)
(2) सिद्धार्थसिंह मोजदान गढवी(झुला)
(3) डॉ. मनोज फतेहसिंह गढवी (बारहट) (वीरवदरका-मोरबी)
(4) यशपाल प्रकाशदान गढवी (ईसराणी) (जामनगर)

(5) विवेक हसमुख गढवी (बारहट)

(6) रुद्र भरतदान गढवी
(7) निरूपाबेन तखतदान गढवी
(8) धवलकुमार फतेहसिंह गढवी (पालनपुर)
(9) जयदीप गोविंद गढवी
(10) विमलदानभाई खेंगारभाई गढवी (वींगडीया-कच्छ)
(11) ऋतुबेन अमरसिंह राबा
(12) पूजाबेन लाभुभाई गढवी (बावडा)


पास थनार दरेक खूब खूब अभिनंदन

ऊपर ना लीस्ट मां भूल के कोई नाम रही गयु होय तो आ नंबर 9913051642 पर मोकली सहकार आपवा विनंती तेमज पास थयेल उमेदवारोना संपर्क नंबर होय तो मोकलवा विनंती

            वंदे सोनल मातरम्

जो तमारा पासे चारणी साहित्य , रचनाओ, ऑडियो , पुस्तक,  होय तो आप ब्लॉग पर मुकवा मांगता होय तो मोकलवा विनंती छे.

Email - vejandh@gmail.com

Mo - 9913051642


      तमारा कोई Whatsapp ग्रुपमां चारणी साहित्यअवनवा समाचाररचनाओ, उपयोगी माहिती तथा सरकारी नोकरी जेवा अपडेट मेळववा होय तो 9913051642 नंबर ने ग्रुप मां ऐड करो.
आ मेसेज चारण समाजना दरेक भाईओ साथे अचूक शेर करशो जेथी वधुमां वधु ग्रुपना चारण समाजना भाईओ आ माहितीनो फायदो लई शके.
                         सहकार बदल आपनो आभार

➡ चारणी साहित्य ब्लॉग मां काई फेरफार के आपना सूचन के अभिप्राय आपवा नम्र विनंती छे


                                          वंदे सोनल मातरम

खट विधानी काव्य रचियता - बह्मानंद स्वामी (लाडुदान)

खट विधानी काव्य
मनहर छंद
रचियता - बह्मानंद स्वामी (लाडुदान)

27 जुलाई 2017

केज्यो आवस्युं काल

वरसाद ना वातावरण मां बहार गाम गयेल घरधणी पोताना घरे समाचार कहेवडावे छे के आजे नई अवाय काले आवस्युं.. एनुं कारण दर्सक गीत....

.          *केज्यो अमे आवस्युं काले*
.      *रचना: जोगीदान गढवी(चडीया)*

.                       *दोहो*
संदेस मारो साजणा,तुं, सांभळ साचो साच
जळ नो आभे जोगडा, निरख्यो तांडव नाच

.                        *गीत*

हाईवे पर होडकां हाले रे...
केज्यो अमे आवस्युं काले.....टेक

नदीयुं गाडी तुर आ नाहे, चडीया कांठे चार
झिक झिले नइ झाडवां एवो, मंडीयो मुसळ धार
आडे धड माग ना आले रे...
केज्यो अमे आवस्युं काले..01

जळ केरा जे जीववा आशे, बांधीया हुता बांध
तुटतां भळी थ्येल ताराजी, धोम मचावी धांध
वरहावी आफत्युं वाले...
केज्यो अमे आवस्युं काले..02

आंम भुका जांणे आभ माथेथी, काढीया चारे कोर
ठोर वरहे एनी ठंडीये ध्रुजे, ढाळीये बांधेल ढोर
मेघलीयो मौज मां म्हाले रे...
केज्यो अमे आवस्युं काले..03

गोम धणेंणीन वादळां गाजे, क्रोड गोपी अने कान
मेघ आकाशी राहडो मांड्यो, जोई ल्यो जोगीदान
त्रांबाळु ढोल ना ताले रे...
केज्यो अमे आवस्युं काले..04

⛈🌨🌧🌧⚡🌨🌧🌨⛈

पींगळशी मेघाणंद् गढवी नी जन्म जयंती

पींगळशी मेघाणंद् गढवी नी जन्म जयंती 



पिंगळशी मेघाणंदभाई गढवीनुं परिचय

नाम :- पिंगळशी
पितानुं नाम :- मेघाणंदभाई लीला

जन्म :- सवंत 1970 श्रावण सुद-5
ता.27-07-1914
अवशान :- सवंत 2054 जेठ सूद-5
ता.31-05-1998



पींगळशी मेघाणंदभाई गढवी रचित 5 जेटला अमूल्य अने अप्राप्य काव्य संग्रहना पुस्तको ई-बुक स्वरूपे 


(1) हरिनी हाटडीऐ (200 जेटली रचनाओ) ::- Click Here


(2) वेणुनाद (100 जेटली रचनाओ) ::- Click Here

(3) निजानंद काव्यधारा (80 जेटली रचनाओ) ::- Click Here

(4) महर्षि दयानंद जीवन दर्शन ::- Click Here

(5) खेडूत बावनी ::- Click Here


आ अमूल्य अने अप्राप्य काव्य संग्रहो ई-बुक बनाववा माटे मोकलवा बदल श्री लक्ष्मणभाई पिंगळशी गढवी (जामनगर) नुं खूब खूब आभार

आपनी पासे पण अप्राप्य पुस्तको, रचनाओ, लेखो, अंको, साहित्य वगेरे होय तो आप पण मोकली शको छो आ नंबर 9913051642 पर

आप बधा आपनो किंमती समय काढी सहकार आपो छो ऐ बदल आपनो पण खूब खूब आभार


                                         वंदे सोनल मातरम्

||आवड़ माताजी नो छंद || ||कर्ता मितेशदान(सिंहढाय्च) ||

*||रचना:आवड़ माताजी नो छंद ||*
       *||छंद- दुर्मिळा(सप्तक)||*
     *||कर्ता-मितेशदान महेशदानदान गढ़वी(सिंहढाय्च) ||*

जननी जपु जाप नमू जगदंब अजा मात आवड़  आदि अनंत,
धरी अवतार बणी रूप नागण आठम सात शकत्तिय खंत,
पुकार सुणी साद मामड प्राथ रही खोरडे आई खेल रमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे, *(१)*

खलके धर गेल खेलंतिय प्रांगण सातेय सोम सजाव लगे,
छलके मुख हेत छबी सुख दाखण,मामड चित्त उजास जगे,
कर धारण नाग वलोणाय भम्मर घम्मर घम्मर छाय जमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमें *(२)*

काळ थंभ गयो तिमिराण उजागर थंभण भाण भु थाप दिये,
कळके दळ आकाश संग दिगंबर  द्रिसत खोडिय कुम्भ लिये,
जल पान अमृत कियो मुख मेरख जीवन तारणहार तमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(३)*

जगराय रखी रिझ दाखत राज प्रसन्न तनोटाय मात जयो,
हुण काट सेना कुळ तेमड़ डारण भोय वधेरण जात हयो,
घंटीयाल हण्यो हळेळाट असुराण हाक हुकाटेय आण खमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(४)*

त्रिलोकिय तात बणी खप्पराळीय जब्बर जोगण रास रमे,
व्रहेमांड फरे नव लाखाय माडीयू नाद गुंजावत शोर भमे,
धधकावत पद पड़े धर अंबर,चौद भुवन श्रृंगार समे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(५)*

भळके जब जंग लगे झट्ट खैखट्ट खप्पर खांडेय शोर मचे,
कर चुड़ खणंकित खेलण युद्ध रमे जगराय रक्त्त रचे,
धड़ काटन छेद दियो मुंड मारण शुंभ निःशुंभ
हण्यो रणमें,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(६)*

उजळा हिये हार बणाव सूखा रूप कुंडल कान धरु करणे,
सघळा वरु वाट तणा मत पाई बणु सत चारण तु शरणे,
मिहिराण ते'मिर समीर घडो गुण चारण चित सरु मनमे,
अमियाण रखोपाय राखण आवड़ जोगण ध्यानम मीत नमे *(७)*

*🙏~~~मितेशदान(सिंहढाय्च)~~~🙏*

*उजळा हिये हार बणाव सूखा रूप कुंडल कान धरु करणे,*

*अर्थ:अमारा आ चारणी रिदय ने मा तमे उजळा बनावो अने सुख रूपी हार डॉक मा ने कान मा कुंडल स्वरूप गुण परोवो,

*सघळा वरु वाट तणा मत पाई बणु सत चारण तु शरणे,*

*अर्थ: अमारा दरेक दुख ने भूली ने सदाय साची वाट पकड़ी ने जगदम्बा तारो मत जे हसे,जे ते धारयु हसे तारा बाळको  माटे ते अमे स्वीकारी लेसु,अने सत्य चारण  बनी राहेवानो ध्येय राखिस ने सदाय तारा शरणे ज रहीस,

*मिहिराण ते'मिर समीर घडो गुण चारण चित सरु मनमे,*

*(अहीं तिमिर शब्द ने बे अर्थ मा लै ने  ते'मीर कर्यो छे,)*

*(मीर मतलब अमीर,धनवान अने तिमिर एटले अंधारु,)*

*अर्थ:मिहिराण:,सूरज,(जे तेजस्वी छे तेनु तेज),तिमिर:अंधारु,(जे गाढ़ शांतिथी घेरायेल छे तेवु,) अने समीर: पवन(जेनी गति अने शकत्ति अपार छे ते)
है मा आ त्रणेय ना गुण मारा मा संचित कर के जेथी हु समाज मा चारण छु तेवा गर्व थी सूर्य जेवु तेज राखी सकू,जेथी हु गाढ़ तिमिर नि जेम शांत मन थी दरेक परिस्थिति मा धीरज धरि शकु,अने पवन जेवी गति संचित करु के जेथी हु मारी उत्तरोत्तर प्रगति करी मारा समाज अने मारा जीवन ने उजागर करि शकवा सक्षम बनु,

*मिहिराण:  मि*
*ते'मीर     :   ते*
*समीर      :   स्*

🙏~~~ *कवि मीत* ~~~🙏

Sponsored Ads

ADVT

ADVT